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ज्ञान-मीमांसा | १३३ सकते, अत: केवल ज्ञान हो जाने पर मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की सत्ता नहीं रहती, वे मिट जाते हैं, उस समय अकेला केवल ज्ञान ही रहता है। यह पक्ष प्रथम पक्ष की अपेक्षा अधिक तर्क-संगत है।
पाँच ज्ञानों में तीसरा ज्ञान है—अवधिज्ञान । अवधिज्ञान चारों गतियों के जीवों को हो सकता है । अवधिज्ञान रूपी पदार्थों का होता है। अवधिज्ञान क्या है ? इसके सम्बन्ध में कहा गया है, कि अवधि का अर्थ है- सीमा । जिस ज्ञान की सीमा होती है, उसे अवधि ज्ञान कहा जाता है। अवधिज्ञान की सीमा क्या है ? रूमी पदार्थों को जानना । अवधिज्ञान के दो भेद हैं- भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय । भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारक को होता है। गुण प्रत्यय अवधिज्ञान मनुष्य और तिर्यञ्च को होता है । जो अवधिज्ञान बिना किसी साधना के मात्र जन्म के साथ ही प्रकट होता है, उसे भवप्रत्यय कहते हैं । जो अवधिज्ञान किसी साधना - विशेष से प्रकट होता है, उसे गुणप्रत्यय कहा जाता है। अवधिज्ञान के अन्य प्रकार से भी भेद किए गए हैं, किन्तु उनका यहाँ पर विशेष वर्णन करना अभीष्ट नहीं है। यहाँ तो केवल अवधिज्ञान के स्वरूप और उसके मुख्य भेदों का ही कथन करना अभीष्ट है।
पाँचों ज्ञानों में चौथा ज्ञान है— मन: पर्यायज्ञान । यह ज्ञान मनुष्य गति के अतिरिक्त अन्य किसी गति में नहीं होता है । मनुष्य में भी संयत मनुष्य को ही होता है, असंयत मनुष्य को नहीं । मनःपर्याय ज्ञान का अर्थ है - मनुष्यों के मन के चिन्तित अर्थ को जानने वाला ज्ञान । मन एक प्रकार का पौद्गलिक द्रव्य है । जब व्यक्ति किसी विषय - विशेष का विचार करता है, तब उसके मेन का तदनुसार पर्यायों में परिवर्तन होता रहता है । मन: पर्याय ज्ञानी मन की इन पर्यायों का साक्षात्कार करता है। उस पर से वह यह जान सकता है, कि अमुक व्यक्ति किस समय क्या बात सोचता रहा है। अतः मन: पर्याय ज्ञान का अर्थ है-मन के परिणमन का साक्षात् प्रत्यक्ष करके मनुष्य के चिन्तित अर्थ को जान लेना । मनः पर्याय ज्ञान के दो भेद हैं- ऋजुमति और विपुलमति । ऋजुमति की अपेक्षा विपुलमति का ज्ञान विशुद्धतर होता है क्योंकि विपुलमति ऋजुमति की अपेक्षा मन के अति सूक्ष्म परिणामों को भी जान सकता है। दूसरी बात यह है कि ऋतुमति प्रतिपाती होता है और विपुलमति अप्रतिपाती होता है । यही इन दोनों में अन्तर है।
अवधिज्ञान और मनः पर्यायज्ञान प्रत्यक्ष अवश्य हैं, क्योंकि ये दोनों ज्ञान सीधे आत्मा से ही होते हैं, इनके लिए इन्द्रिय और मन की सहायता की आवश्यकता नहीं रहती । किन्तु अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान दोनों ही विकल प्रत्यक्ष हैं, जबकि केवल ज्ञान सकल प्रत्यक्ष होता है। अवधि ज्ञान केवल रूपी पदार्थों का ही प्रत्यक्ष कर सकता है और मनः पर्याय ज्ञान रूपी पदार्थों के अनन्तवें भाग मन की पर्यायों का ही प्रत्यक्ष कर सकता है। इसलिए ये दोनों विकल प्रत्यक्ष हैं।
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