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जैन दर्शन की समन्वय-परम्परा |१११ जन्मान्तरवाद के सम्बन्ध में भी अपने अनेकान्तवादी दृष्टिकोण के आधार पर समन्वय करने का सफल प्रयास किया था। भगवान् महावीर के इस अनेकान्तवाद का प्रभाव अपने समकालीन बौद्ध दर्शन पर भी पड़ा और अपने युग के उपनिषदों पर भी पड़ा। उत्तरकाल के सभी आचार्यों ने किसी न किसी रूप में उनके इस उदार सिद्धान्त को स्वीकार किया ही था। यही कारण है कि भारतीय दर्शनों में कुछ विचार भेद और साधन भेद होते हुए भी, उद्देश्य और लक्ष्य में किसी प्रकार का विलक्षण विरोध नहीं है, उसमें विरोध की अपेक्षा समन्वय ही अधिक है।
भारतीय दर्शन जीवन और जगत् के साक्षात्कार का दर्शन है। भारतीय चिन्तकों ने कहा कि श्रुत और दृष्ट दोनों में से श्रुत की अपेक्षा दृष्ट का ही अधिक महत्त्व है। दर्शन शब्द का मूल अर्थ ही सत्य का दर्शन है, साक्षात्कार है। अतः भारतीय दर्शन श्रोता की अपेक्षा द्रष्टा ही अधिक है। उसने जीवन के सत्य को साक्षात्कार करने का प्रयत्न किया है और सफलता भी प्राप्त की है। भारतीय दर्शन जितना महत्त्व चिन्तन को देता है. 'उतना ही अधिक महत्त्व वह अनुभव को भी देता है। भारतीय दर्शनों का अन्तिम लक्ष्य जीवन को भौतिक धरातल से प्रारम्भ करके सत्य की उस चरम सीमा तक पहुँचाना है, जिसके आगे अन्य राह नहीं रहती, भारतीय जीवन का लक्ष्य वर्तमान जीवन के बन्धनों से निकल कर दिव्य जीवन की ओर अग्रसर होने का है। भारतीय दर्शन के मूल में आध्यात्मवाद है और इसी कारण वह प्रत्येक वस्तु को अध्यात्मवादी तुला पर तौलता है। उसे आध्यात्मवादी कसौटी पर कसकर ही स्वीकार करना चाहता है। जीवन में जो कुछ अनात्मभूत है, उसे वह स्वीकार करना नहीं चाहता, फिर भले ही वह कितना ही सुन्दर और कितना ही अधिक मूल्यवान् क्यों न हो। इसी आधार पर भारतीय दर्शन जीवन और जगत् को. कसौटी पर कसता है और उसके खरे उतरने पर उसकी आध्यात्मवादी व्याख्या करके, वह उसे जनजीवन के लिए ग्राह्य बना देता है, जिसे पाकर जनजीवन समृद्ध हो जाता है।
भारतीय दर्शन का उद्देश्य वर्तमान असन्तुष्ट जीवन से निकल कर इधर-उधर भटकते रहना नहीं है, बल्कि उसकी वर्तमान व्याकुलता का लक्ष्य है, अनाकुलता प्राप्त करना। कुछ आलोचक भारतीय दर्शन पर दुःखवादी और निराशावादी होने का आरोप लगाते हैं, ये प्रवृत्ति पाश्चात्य दार्शनिकों में अधिक है और उनका अनुसरण करके कुछ भारतीय विद्वान् भी उनके स्वर में अपना स्वर मिला देते हैं। मेरे अपने विचार में भारतीय दर्शन को निराशावादी और दुःखवादी कहना सत्य से परे है। भारतीय दर्शन वर्तमान जीवन के दुःख और क्लेशों पर खड़ा होता तो अवश्य है, परन्तु वह उसे अन्तिम सत्य एवं लक्ष्य नहीं मानता है। उसका एकमात्र लक्ष्य तो इस क्षणभंगुर एवं निरन्तर परिवर्तनशील तथा प्रतिक्षण मरण के मुख में जाने वाले संसार को अमृत प्रदान करना है। भारतीय दर्शन की यह विशेषता रही है कि उसने क्षणभंगुरता में भी अमरता को देखा है। उसने अन्धकार में भी प्रकाश की खोज की है
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