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________________ देगी। उनके प्रवचन, उनके लेख, उनकी कविता, उनके काव्य, उनके संस्मरण, उनकी समीक्षा, उनकी परिचर्चा और उनकी लेखनी से आबद्ध तथा उनके द्वारा सम्पादित ग्रन्थों की राशि शताधिक हो चुकी है आपके सभी प्रकार के साहित्य का प्रकाशन 'सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा' से होता रहा है, और वहीं से आपके विचारों के प्रतिनिधि पत्र 'अमर भारती' का प्रकाशन होता था, परन्तु अब ये दोनों संस्थाएँ आपके द्वारा संस्थापित वीरायतन, राजगृह में आ चुकी हैं। अतः आपकी कृति, आपकी वाणी और आपकी प्रज्ञा- - इन तीनों का संगमस्थल वीरायतन बन चुका है। एक साहित्य-सेवी के रूप में कविश्रीजी भारतीय वाङ्गमय में सदा सम्मान के साथ याद किए जाएँगे । कविश्रीजी की लेखनी — क्या कविता, क्या निबन्ध, क्या कथा, क्या धर्म-आलेख - सभी क्षेत्रों में अपने करिश्मे दिखाती है। काव्य-क्षेत्र में 'सत्य हरिश्चन्द्र' की तपः पूत यशः गाथा जहाँ एक ओर अपनी यश:-कीर्ति दुहरा रही हैं, 'चिन्तन के मुक्त स्वर' पुस्तक जीवन जगत की नानाविध रंगीन झाँकी प्रस्तुत करती है । 'चिन्तन के मुक्त स्वर' तो कविश्रीजी के सम्पूर्ण चिन्तक जीवन की काव्यमय अभिव्यक्ति है — ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी । - गद्य लेखन के क्षेत्र में आपकी सशक्त एवं महान् गौरवमयी कृति है--' चिन्तन की मनोभूमि ।' 'चिन्तन की मनोभूमि' आपके सम्पूर्ण जीवन के चिन्तन - सागर से चुने हुए मोतियों की माला है । इसमें धर्म, अध्यात्म, संस्कृति, सभ्यता, समाज एवं राजनीति आदि -- चिन्तन के विविध पहलुओं पर कविश्रीजी के चिन्तन का सम्यक् क्रमबद्ध विशद् संकलन- सम्पादन है। इसमें जैन धर्म की ही चिन्तना नहीं, बल्कि जैनेत्तर विचारों पर भी सहृदयतापूर्ण विचार प्रस्तुत हैं। इसका जैन एवं जैनेत्तर — सब के लिए समान रूप से महत्त्व है। धर्म, संस्कृति एवं समाज पर इस प्रकार निष्पक्ष तथा स्पष्ट, सुन्दर एवं समीचीन चिन्तन अन्यत्र विरल ही प्राप्त होता है। संसद सदस्य तथा प्रसिद्ध साहित्यकार सेठ गोविन्ददास ने एक बार कहा था— "विशिष्ट विद्वान हो या सामान्य पाठक, स्त्री हो या पुरुष तथा बाल हो या वृद्ध, यह ग्रन्थ सबके लिए समान रूप से उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण है ।" इस ग्रन्थ की भाषा प्राञ्जल होते हुए भी सरल है, भाव गम्भीर होते हुए भी हृदय स्पर्शी हैं और शैली सीधी और स्पष्ट है। सम्पादन के क्षेत्र में 'निशीथ चूर्णि भाष्य' आपकी सम्पादन कला की विशिष्ट उपलब्धि है। लगभग २००० पृष्ठों का यह विशालकाय ग्रन्थ प्राकृत भाषा में उपनिबद्ध हुआ है। जैन धर्म, संस्कृति, समाज और दर्शन ही नहीं, बल्कि समग्र भारतीयधर्म, दर्शन और संस्कृति का यह एकाकार-ग्रन्थ माना जाता है। आगम प्रसिद्ध चार या छह छेद-सूत्रों में से निशीथ प्रथम छेद-सूत्र माना जाता है, जिस पर प्राकृत भाषा में ही विस्तृत व्याख्या चूर्णि और प्राकृत में ही पद्यमय भाष्य- इन तीनों का एक साथ सम्पादन किया गया है । यह ग्रन्थ चार भागों में प्रकाशित हुआ है जिसके दो भागों पर विस्तृत समीक्षात्मक भूमिकाएँ लिखी गई हैं— एक भाग पर स्वयं कविजी की हिन्दी में विस्तृत भूमिका है, तथा एक पर जैन - परम्परा के विशिष्ट विद्वान् तथा भारतीय दर्शन के व्याख्याकार पण्डित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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