________________
९२ चिंतन की मनोभूमि रहेगा। विचारक लोग उसे व्यर्थ समझ कर छोड़ बैठेंगे। अस्तु, चिकित्साशास्त्र उपयोग एवं प्रयोग के द्वारा रोग का स्वरूप निश्चित करता है, रोगोत्पत्ति का कारण मालूम करता है, रोग को दूर करने का उपाय एवं साधन बतलाता है, वस्तुतः यही उसकी उपयोगिता है। इसी प्रकार आध्यात्मशास्त्र में यदि कहा जाता है कि दुःख तो है, किन्तु उसे दूर नहीं किया जा सकता, तो यह एक ऐसा तर्क है, जो किसी भी बुद्धिमान के गले उतर नहीं सकता। जब दुःख है, तो उसका प्रतिकार क्यों नहीं किया जा सकता ? दु:ख के प्रतिकार का सबसे सीधा और सरल मार्ग यही है कि दु:ख के कारण को दूर किया जाए। भारत का आध्यात्मदर्शन दु:ख की सत्ता और स्थिति को स्वीकार करके उसे दूर करने का प्रयत्न करता है, साधना करता है और उसमें सफलता भी प्राप्त करता है। भारत का अध्यात्मवादी दर्शन निराशावादी दर्शन नहीं है, वह शत-प्रतिशत आशावादी है। जीवन को मधुर प्रेरणा देने वाला दर्शन है। आध्यात्मवादी दर्शन मानव-मात्र के सामने यह उद्घोषणा करता है कि अपने को समझो और अपने भिन्न जो पर है, उसे भी समझने का प्रयत्न करो। स्व और पर के विवेक से ही तुम्हारी मुक्ति का भव्य द्वार खुलेगा। शरीर में रोग है, इसे भी स्वीकार करो। और, उसे उचित साधन के द्वारा दूर किया जा सकता है, इस पर भी आस्था रखो। दु:ख है, इसे स्वीकार करो, और वह दुःख दूर किया जा सकता है, इस पर भी विश्वास रखो। साधन के द्वारा साध्य को प्राप्त किया जा सकता है, इससे बढ़कर मानव-जीवन का और आशावाद क्या होगा ? भारत का आध्यात्मवादी दर्शन कहता है कि साधक! तू अपने वर्तमान जीवन में ही मुक्ति प्राप्त कर सकता है, आवश्यकता है, केवल अपने जीवन की दिशा को बदलने की।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org