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________________ YOORAMMAMM उनकी योग्यता का परिचय स्ट्रॉस्बोर्ग के जैन में गुजरात में प्रतिलिपि की गई प्रतियां हैं, जिनसे ग्रंथो के सूचिपत्र से मिलता है। यह सूचिपत्र यह पता चलता है कि तकनीकि प्रगति तथा छपी लीड़ेन में 1975 में प्रकाशित हुआ था। पुस्तकों के बावजूद प्रतिलिपि की परम्परा किस दुर्भाग्यवश 1996 में प्रोफेसर त्रिपाठी के निधन प्रकार जीवित रही। वे आधुनिक आयताकार के बाद उनका कार्य अधूरा रह गया। प्रोफेसर कागजों पर लिखि गई हैं। बलबीर काफी समय प्रो. त्रिपाठी के साथ इस ब्रिटिश लाइब्रेरी में कुल मिलाकर 850 कार्य में लगी रही तथा उनके दो अन्य सहयोगी हस्तलिखित ग्रंथ या स्वतंत्र पाठ है, जिनमें डॉ. कानुभाई शेठ तथा डॉ. कल्पना शेठ को । अधिकतर श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध हैं। भी हस्तलिखित ग्रंथो के सूचिकरण का वर्षों दिगम्बर ग्रंथ गिनती में 10 से ज्यादा नहीं है। का अनभव है। ये तीनों मिलकर वर्तमान में श्वेताम्बर ग्रंथ मख्यत: इन विषयों के हैं - सूचिकरण का जो कार्य कर रहे हैं, वह प्रो. (1) श्वेताम्बर आगम और उसके अनेक पारम्परिक त्रिपाठी के सूचिपत्र के आधार पर ही है। घटक। ब्रिटिश लाइब्रेरी का संग्रह (2) दार्शनिक तथा सैद्धान्तिक ग्रंथ, जिनमें ब्रिटिश लाइब्रेरी में जैन हस्तलिखित ग्रंथों तत्वार्थसूत्र, कर्म साहित्य तथा ब्रह्माण्ड के संग्रह का कार्य दो शताब्दी से भी अधिक मीमांसा प्रमुख है। समय से नियमित रूप से हो रहा है। इस संग्रह (3) तकनीकी दार्शनिक साहित्य (तर्कशास्त्र में वे हस्तलिखित ग्रंथ भी हैं, जिन्हें 18वीं तथा आदि)। 19वीं शताब्दी में भारत यात्रा पर गए ब्रिटिश (4) साधुओं, मुनियों तथा श्रावकों का और जर्मन विद्वानों ने खरीदा था। भारत यात्रा आचारशास्त्री, जैसे उपदेशमाला, योगशास्त्र, के दौरान ये विद्वान गुजरात और राजस्थान में मौनव्रत तथा दान आदि विषयक ग्रंथ । काफी समय तक रहे। वहां विविध स्रोतों से (5) कथा-साहित्य, जैसे-तीर्थंकरों तथा अन्य जो हस्तलिखित ग्रंथ विक्रय के लिए उपलब्ध ___ महान लोगों (कालका आदि) से संबंधित थे, वे उन्होंने प्राप्त किए और उन्हें यूरोप ले दंत कथाएं और प्रसिद्ध नायकों यथा आए। यशोधरा, शालिभद्र आदि के साहसिक ब्रिटिश लाइब्रेरी के संग्रह में प्राचीनतम कार्यों की कहानियां। हस्तलिखित ग्रंथ 13वीं सदी का है, जो यूरोपीय (6) स्तोत्र साहित्य पुस्तकालयों में इस कारण बेजोड़ है कि यह ताड़ (7) धार्मिक साहित्य, यथा पूजा-विधान उपवास पत्र पर लिखा हुआ हैं। यह जौकल्प की प्रति है, विधि आदि। जो एक महत्वपूर्ण तकनीकी कार्य है। इसमें मठ ___(8) पट्टावली जैसे ऐतिहासिक ग्रंथ। विषयक सिद्धांतो का विस्तार से प्रतिपादन किया इन ग्रंथों का सूक्ष्म अवलोकन करने पर गया है। अद्यतन ग्रंथों में 20 वीं सदी के प्रारंभ पता चलता है कि इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫ તીર્થ-સૌરભ ૧૫o. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001295
Book TitleTirth Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Devotion, & Articles
File Size6 MB
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