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________________ यूरोप के संग्रहालयों में हस्तलिखित जैन ग्रंथ डॉ. उर्मिला जैन 322, HANWORTH RD. HOUNSLOWM MIDDLESEX, TW3 35H U.K. विश्व को जैन धर्म और जैन परम्परा की देन विविध रूपों में रही है। उनमें से एक है, उनका वैविध्यपूर्ण और प्रचुर हस्तलिखित साहित्य, जो दुनिया भर में यत्र-तत्र बिखरा हुआ है। जैन परम्पराएं कम से कम 2600 वर्ष पुरानी हैं। ये श्रुत परम्परा थी, जो साधु-संतो, मुनियों द्वारा एक से दूसरे को सुनाकर बढ़ाई जाती रहीं। इसके बावजूद लिखने-पढ़ने की परम्परा भी शास्त्रीय सिद्धआन्तवादियों द्वारा हमेशा से प्रशंसित रही हैं। उदाहरणार्थ, सभी जैनियों को पर्युषण पर्व का ज्ञान होता है, जो उनका एक सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। इस अवसर पर कल्पसूत्र की पूजा की जाती है । इसी प्रकार ज्ञान पर्व, जो सरस्वती के साथ ही सभी धार्मिक ग्रंथों को समर्पित है। जैन पुस्तकालय (जिन्हें भंडार या ज्ञानभंडार भी कहा जाता है ) ऐसे खजाने हैं, जहां हर प्रकार के, हर मत के तथा हर काल के हस्तलिखित ग्रंथ सुरक्षित हैं। ऐसा ही एक सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालय है, जैसलमेर मंदिर पुस्तकालय, जहां ११वीं शताब्दी के प्राचीनतम ग्रंथ संग्रहीत हैं। इसके अतिरिक्त पश्चिम भारत में अहमदाबाद, सूरत, जयपुर, आरा, पाटण, बीकानेर आदि और कर्नाटक में मूडबिद्री भी इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं। इसके अलावा भारत के बाहर अन्य देशों में भी विशेषतः यूरोपीय તીર્થ-સોરભ १५६ Jain Education International देशों में जैसे इटली, आस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस तथा ब्रिटेन के पुस्तकालयों में भी हस्तलिखित जैन ग्रंथ संग्रहीत हैं। इन सभी संग्रहों का अपना वैशिष्ट्य और इतिहास है । जैसे फ्रांस में स्ट्रासबोर्ग स्थित संग्रहालय इसलिए महत्वपूर्ण है कि वहां बड़ी संख्या में दिगंबर मूलपाठों का संग्रह है। ब्रिटेन में कई स्थानों पर जैन ग्रंथो का संग्रह है। ऑक्सफोर्ड के साथ ही लंडन में रोयल एशियाकि सोसाइटी में प्रचुर हस्तलिखित ग्रंथ हैं। ये ग्रंथ कर्नल जेम्स टॉड ने 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में पश्चिमी भारत की यात्रा के दौरान प्राप्त किये थे । लंडन के वेलकम इंस्टीट्यूट में भी ऐसे ग्रंथों की बड़ी संख्या है। जैन धर्मावलम्बियों के साथ ही विद्वानों द्वारा इनका उपयोग हो सके, इसके लिए आवश्यक है कि इनका विधिवत सूचिकरण हो तथा इन सूचियों में विस्तार से उनका वर्णन हो । वर्तमान में ब्रिटिश लाइब्रेरी, ब्रिटिश म्युजियम तथा विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्युजियम के संग्रहों के सूचिकरण का कार्य प्रोफेसर नलिनी बलबोर अपने कुछ सहयोगियों के साथ कर रही हैं । इनका यह प्रोजेक्ट ब्रिटिश लाइब्रेरी तथा इंस्टीट्यूट ऑफ जैनालॉजी द्वारा प्रायोजित है । वैसे यह परियोजना एक गुजराती विद्वान, प्रो. चन्द्रभाई त्रिपाठी द्वारा शूरू की गई थी। ये बाद में बर्लिन (जर्मनी) में इंडोलॉजी के प्रोफेसर और जैन ग्रंथों के विशेषज्ञ भी हुए । રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001295
Book TitleTirth Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Devotion, & Articles
File Size6 MB
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