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________________ नारी जागरण का प्रेरक पुंज प्रो. डॉ. राजाराम जैन [आरा (बिहार ) ] श्रद्धेया मातुश्री सुमतिबेन शाह जी युग निर्मात्री महिलारत्न थी। उन्हों ने नारी जगत की अन्धकार पूर्ण घड़ियों में नारी जागरण के संकल्प का दुन्दुभिनाद किया, साधनाभावों में भी उन्होंने असीम धैर्यपूर्वक साहसभरा कदम आगे बढ़ाया और विविध विरोधों के बीच भी उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में, जो सफलता प्राप्त की, वह आश्चर्यजनक है, चमत्कारी और ऐतिहासिक है। नयी पीढ़ी के लिए उनका फौलादी व्यक्तित्व आगमी पीढ़ी के लिए निश्चय ही एक प्रेरणाजनकं स्रोत का कार्य करता रहेगा। पूज्या सुमतिबाईजी नारी जागरण के मंच की अधिष्ठात्री दिव्य देवी थे। उनके संरचनात्मक कार्यों ने न केवल जैन एवं जैनेतर समाज को प्रभावित किया, अपितु प्रान्तीय एवं केन्द्रीय सरकारों को भी प्रभावित किया। उसका एक साक्षात् प्रमाण यही है कि 'पद्मश्री' जैसी महिमापूर्ण राष्ट्रीय सम्मानोपाधि शहनाई वादन के साथ मांगलिक स्तुति गान करती हुई स्वयं ही उनके दरवाजे पर दस्तक देती हुई आ पहुँची थी। सन् १९९८ के अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग लेने के लिए मुझे मेरे हितैषी गुरुजनों ने अनुरोध- आदेश किया • था और जब पूज्या सुमतिबाईजी से मैंने आशीर्वाद माँगा, तो उन्होंने एवं विदुषीरत्न पं. विद्युल्लताजीने मुझे सफलता के लिए केवल आशीर्वाद ही नहीं दिया था, बल्कि यह भी आदेश दिया था कि રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫ Jain Education International निर्वाचन के बाद विद्वत्परिषद का एक अधिवेशन शोलापुर में भी आयोजित किया जाना हैं । पूज्या मातुश्री नारी जागरण एवं नारी शिक्षाप्रसार की पर्यायवाची ही बन गई थीं । उन्होंने अपनी श्राविका शिक्षा संस्था प्रारम्भ में एक साधन विहीन सामान्य भवन में स्थापित की थी और देखते ही देखते वह एक ऐसी विशाल संस्था बन गई तथा सभी के सहयोग से उसके लिए साधनसम्पन्न एक ऐसा विशाल भवन बन गया कि उसने एक महिला विश्वविद्यालय का स्वरूप ही धारण कर लिया। क्या ही अच्छा हो कि संस्था के पदाधिकारीगण उसे पद्मश्री सुमतिबाई शाह महिला विश्वविद्यालय के रूप में घोषित करने ले लिए प्रदेश सरकार, केन्द्र सरकार या युनिवर्सिटी ग्राण्ट कमीशन से अनुमति प्राप्त करने का प्रयत्न करे तथा महामति विदुषीरत्न ब्रह्म पं. विद्युल्लता शाह को उसका प्रथम संस्थापक - कुलपति घोषित करावे । पूज्य मातुश्री के समाज एवं राष्ट्र के लिए दिये गये निर्माणकारी अवदानों की एक दीर्घश्रृंखला है । अत: उनके प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करने के लिए सुयोग्य एवं सक्षम शब्दों का अभाव हो रहा है। इसी विवशता के कारण अधिक लिख पाना शक्य नहीं रहा है। अतः मौनपूर्वक उनके पावन श्री चरणों में अपनी सात्विक श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ । महाजन टोली नं. २, आरा ( बिहार ) ४०२ ३०१ For Private & Personal Use Only તીર્થ-સૌરભ १४७ www.jainelibrary.org
SR No.001295
Book TitleTirth Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Devotion, & Articles
File Size6 MB
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