SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृषि विकास कुछ हानिकारक ही सिद्ध हुई है। उद्यान और अहिंसा उद्यानों के विशेषज्ञों की एक समस्या है कि सार्वजनिक उद्यानों को लोग खेलकूद एवं सैर-सपाटी के रूप में लेने लगे हैं। इस कारण अनेक पेड-पौधे क्रिकेट की बॉल हाकी की चोटों से, फुटबालों की मार से नष्ट हो जाते हैं, एक छोटे पेड, घास, पैर के नीचे आते- जाते प्रायः नष्ट हो जाते हैं। बार बार घास लगाई जाती है, परंतु वहां भूमि ही नजर आती है। उद्यान में काम करनेवाले माली, चौकीदार, इस समस्या का सामना कैसे करें। यह एक विकट समस्या है। खेल विभाग के विशेष प्रभाव के कारण खेल बन्द नहीं किये जा सकते हैं। इस समस्या का प्रमुख कारण यही है कि मनुष्य वनस्पतियों को जीवित नहीं समझते। वनस्पतियों को कुचलने में हिंसा को हिंसा नहीं मानते। यदि वनस्पतियों के प्रति अहिंसा का भाव रखें, तो संभवतया यह समस्या समाप्त हो सकती है। अहिंसा वनस्पतियों की रक्षा में पूर्ण योगदान दे सकती है। आनुवांशिकी और अहिंसा - जेनेटिक्स विश्व संमेलन १९८३ दिसम्बर १२ से २१ दिल्ली प्रदेश में हुईथी। इस संमेलन में विश्व प्रसिद्ध एम.आइ.टी. मासाचुलेट, अमेरिका के प्रोफेसर आर. वेनबर्गने यह बात विशेष रूप में कही, कि मांसाहार करनेवाले व्यक्तियों को कैंसर अधिक होता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में मृत्यु का दूसरा कारण “कैंसर रोग" है और यह रोग मांसाहार से संबंध रखता है। जापान में यह रोग पिछले कुछ वर्षों से लोगों को होने लगा है अन्यथा यह रोग वहां के निवासियों को नहीं होता था। इस रोग का जापान निवासियों को न होनेका कारण, वहां के निवासियों का मांसाहार न करना प्रमुख था। अब जापान के लोगोंने भी मांसाहार करना प्रारंभ कर दिया है जिसके कारण यह रोग वहां पर व्यापक स्तर पर फैल रहा है। भारतवर्ष में कैंसर रोग का एक कारण यह भी हो सकता है। मांसाहार से "जीन्स" परिवर्तन या कारसिनोजन की उपस्थिति प्रमुख कारण हो सकते है। इस बात से यह सिद्ध होता है कि अहिंसा का पालन करनेवाले व्यक्तियों को इस भयानक रोग की सम्भावना कम रहती है और उत्पन्न होने वाली संतान भी स्वस्थ रहती है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और अहिंसा मनोवैज्ञानिकों ने अहिंसा और हिंसा के विशेष प्रभावों का विश्लेषण करना प्रारंभ किया। मनोवैज्ञानिकों के सम्मुख एक विशेष प्रश्न सदैव उलझन में डालता रहा कि मनुष्य अपराधी दृष्टिकोण क्यों अपनाता है। इसमें क्या परिवर्तन किया जा सकता है अपराधी दृष्टिकोण का प्रमुख कारण हिंसा की भावना ही है। अनेको अपराधियों से प्रश्न करने पर ज्ञात हुआ कि उन्हें अपराध करने के बाद कोई ज्ञान नहीं था कि अपराध क्यों किया। उन्हें अहिंसा का पाठ नहीं पढाया गया। यदि हिंसा, अहिंसा का भेद कराया होता, तो सम्भवतया वे अपराधी नहीं होते। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि अपराधों की संख्या कम करना है तो, अहिंसा की शिक्षा बचपन से ही प्रारंभ करनी चाहिए। यह शिक्षा -२४तायंती वर्ष : २५ તીર્થ-સ્સૌરભ ૧૪૩ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001295
Book TitleTirth Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Devotion, & Articles
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy