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में लायें। जल उबालकर पीयें। परकल्याण की यहाँ तक कि मृत्यु भी हो जाती है। पेड-पौधों दृष्टि से जल में किसी प्रकार की विषैली तेजाब, व भावनादि को भी नुकसान पहुँचता है। मलादि न डालें। कहा ग या है - 'जलमल इसका एक मन्दकारण धूम्रपान भी है। मोरिन गिरवायो।
इससे फेफडे खराब हो जाते हैं। तम्बाकू में अग्नि, ईंधन या तेल का प्रदूषण मिले निकोटिन, कोल्टा आर्सेनिक तथा कार्बन
ईंधन का प्रदूषण भी कम भयावह नहीं मोनाऑक्साइड विष का काम करते हैं। है। कोयला, मिट्टी का तेल, डीजल, पैट्रोल, ध्वनि प्रदूषण भी भयावह है। ट्रेन, बस, उपले लकडी आदि के अमर्यादित जलाने से जहाज व लाउडस्पीकर, जुलूस, वाद्ययन्त्र आदि जो धुआं उठता है, वह पूरे वायुमण्डल को से उठनेवाली तरंगे अनिद्रा, चिडचिडापन, नैराश्य दूषित कर देता है। आज औद्योगीकरण के कारण . आदि मानसिक रोगों की जननी है। कर्ण के ओजोन परत तक में छिद्र हो गया है जो भयावह विभिन्न रोग, श्वसन प्रणाली, जनन क्षमता-हास है। किसी व्यस्त चौराहे पर आप शाम को खडें व मस्तिष्क के विभिन्न रोग इससे पैदा होते हो जायें तो सांस लेना भी भारी हो जायेगा। हैं। इसका कारण धुएं से ऑक्सीजन (जीवनदायक जैनधर्म में वाणी को तीन रूपो में नियन्त्रित तत्त्व) का नष्टहोना है। एक तथ्य के अनसार- किया गया है प्रथम मौन रहो (वचन गुप्ति) 'एक व्यक्ति पूरे साल में जितनी ऑक्सीजन का द्वितीय आवश्यकता से अधिक मत बोलो। उपयोग करता है, उतनी ऑक्सीजन एकटन (भाषा समिति) और तृतीय हित मिष्ट और कोयला जलने में, एक मोटर के एक हजार परिमित बोलो (सत्य व्रत)। वाहनादि के कम कि.मी.चलने में, एकहवाई जहाज के दो हजार उपयोग से भी वायु प्रदूषण से बचा जा सकता कि.मी. की यात्रा में खत्म हो जाती है। . है। साथ ही वायुकायिक जीवों की हिंसा से अग्निकायिक-हिंसा से विरत हुआ जाये तो इस विरत हुआ जा सकता है। प्रदूषण से बचा जा सकता है। हम आवश्यकतायें वनस्पति प्रदूषण या वनस्पति का अभाव कम करें। आवश्यकता से अधिक अग्नि न पेड पौधे हमारे जीवन दाता है। वे विष जलायें तो इस प्रदूषण से हमारी रक्षा हो सकती पीकर अमृत देते हैं। सांसारिक प्राणवायु का
बहुभाग वनस्पति से पैदा होता है। बाढ व वायु प्रदूषण
भूस्खलन का रुकना वनस्पति पर निर्भर है। बिना वायु के जीवन की कल्पना असम्भव अनेक जीवों की रक्षा वनों से होती है। वर्षा है। वायु का प्रदूषण ईंधन जलाने, औद्योगिक का नियन्त्रण भी वनस्पति पर है, पर आज क्रियाओं में विभिन्न गैसों के छोडे जाने तथा वनस्पति की हिंसा को कोई हिंसा मानता ही कभी-कभी दुर्घटनावश भी ऐसा हो जाता है। नहीं। असीमित लकडी का प्रयोग कर वनों को वायु प्रदूषण से विभिन्न शारीरिक, मानसिक रोग काटा जा रहा है जिससे रेगिस्तान बढ रहा है,
है।
રજતજયંતી વર્ષ. ૨૫
तीर्थ-सौरभ
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