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है, जिससे पृथ्वी पर मनुष्यजीवन खतरे में पड . विशेषतः कोयला एवं तेल के लिये जिस तीव्रता सकता है।' यही प्रदूषण है। आज मिट्टी, जल, से पृथ्वी का खनन किया जा रहा है वह चिंता अग्नि, वायु, ध्वनि, वनस्पति आदि के प्रदूषण का विषय है। औद्योगीकरण के कारण बडे भयावह हैं।
शहरों और कारखानों के आसपास की जमीन __जैन शास्त्रों में प्रतिपादित मात्र अहिंसा व्रत अत्यन्त प्रदूषित होती जा रही है। खनन से का ही यदि भली भाँति पालन किया जाये तो उठनेवाली धूलि ने फेफडों एवं गले के रोगो इस प्रदूषण रूपी दैत्य से बचा जा सकता है। को जन्म दिया है। इससे पृथिवीकायिक जीवों कितने आश्चर्य की बात है कि प्रदूषण के मुख्य के साथ सेंकडों त्रसकायिक जीवों का भी घात आधार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु (ध्वनि, होता है। यदि हम पृथिवीकायिक जीवों की आकाश), वनस्पति व वन्य प्राणी हैं और स्थूल हिंसा से विरत हो जायें तो ऐसे प्रदूषण जैनाचार छह प्रकारकी स्थूल हिंसा का निषेध से बचा जा सकता है। साथ ही वायु प्रदूषण गृहस्थों को करता हैं। वे छह प्रकार भी से भी हमारी रक्षा हो सकेगी। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, जल प्रदूषण वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक मानव जीवन के लिए वायु के बाद सबसे अर्थात् दो, तीन, चार व पांच इन्द्रिय जन्तु व आवश्यक तत्त्व जल है। पर आज वायु के बाद वन्यप्राणी, मनुष्य आदि हैं। इस प्रकार यह जल ही सबसे अधिक प्रदूषित हो रहा है। जल बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि षट्काय के जीवों के प्रदूषण से केवल जलकाय के ही जीवों की स्थूल हिंसा का त्याग कर दिया जाये तो की हिंसा नहीं होती अपितु उसमें रहनेवाले उक्त छह प्रकार के प्रदूषणों से बचा जा सकता मछली आदि जीव भी मर जाते हैं और प्रदूषित है। अहिंसा का केवल पारलौकिक ही नहीं पानी पीने से मनुष्य तक मर जाते हैं। कारखानों अपितु प्रत्यक्ष जीवन से भी गहरा सम्बन्ध आज का विषैला जल नदी व तालाबों में छोडा जाता समझ में आने लगा है। यद्यपि अहिंसा प्राण है। गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों के उदाहरण विनाश की दृष्टि से विचार करती है और विज्ञान सामने हैं, जिन्हें आज शुद्ध करने की योजनायें उस पर प्रदूषण की दृष्टि से विचार करता है। बनाई जा रही है। नालियों में घरों का तेजाब जैनधर्म प्राणी-मात्र की दृष्टि से अहिंसा पर युक्त व समुद्र तक में परमाणु रियेक्टर का कचरा विचार करता है और विज्ञान केवल मनुष्य की डाला जा रहा है। वैज्ञानिकों का कथन है कि दृष्टि से विचार करता है, किन्तु परिणाम की यदि जल-प्रदूषण न रोका गया तो समुद्र भी दृष्टि से दोनों एक ही केन्द्र बिन्दु पर आकार प्रदूषित होकर भयावह स्थिति उत्पन्न कर देगा। मिल जाते हैं।
जलकायिक जीवों की स्थूल हिंसा से विरत मिट्टी का प्रदूषण
_ होकर इस प्रदूषण को रोका जा सकता है। आज अधिक से अधिक खनिज पदार्थों, स्वकल्याण की दृष्टि से हम पानी छानकर प्रयोग
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तीर्थ-सौरभ
२४तशयंती वर्ष : २५
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