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________________ NRNAMusionNews widowmmunowing अध्यात्म और विज्ञान डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री वर्तमान में किए गए शोध व अनुसन्धान- . (Quantum behaviour) शीर्षक के अन्तर्गत कार्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अध्यात्म और सूक्ष्म कणों के विषय में प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से विज्ञान दोनों अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । यद्यपि दोनों का स्याद्वाद के सातों भंगों (कथनों) को स्वीकार किया प्रयोजन प्राणी मात्र को सुखी करना है, किन्तु दोनों गया है। के विषय एवं क्षेत्र भिन्न-भिन्न हैं। परन्तु प्राणी- नव भूकम्प-विज्ञान (बिसोलॉजी) के जनक जगत और उसके जीवन का विश्लेषण तथा व्याख्या डा. मदनमोहन बजाज ने तथ्यों के साथ यह करने में दोनों की भूमिकाएं अपना-अपना महत्व प्रकाशित किया है कि विश्व में घटित होनेवाली सभी रखती हैं। प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य कारण पशु-हिंसा है। अध्यात्म का विषय और अधिकार-क्षेत्र आत्मा इस प्रकार विज्ञान की यह मान्यता है कि दुनिया की है। आत्मा नित्य, त्रैकालिक, ध्रुव, सत्तामय, ज्ञान- ऐसी कोई घटना नहीं है, जिसका कोई कारण न हो। आनन्दनिर्भर चेतन पदार्थ है । विज्ञान में आत्मा और अध्यात्म भी कार्य-कारण को मानता है, लेकिन उसके कार्यों की मीमांसा नहीं होती; किन्तु प्रकृति जैनधर्म की सैद्धान्तिक मान्यता यह है कि किसी भी और उसके जीवन की प्रत्येक जानकारी भौतिक कार्य के सम्पन्न होने में अन्तरंग और बहिरंग दोनों विज्ञान में निहित होती है। इसलिये प्राय: यह कहा तरह के कारण होते हैं । किन्तु बहिरंग कारण निमित्त जाता है कि अध्यात्म और विज्ञान एक-दूसरे के मात्र है। वास्तव में प्रत्येक द्रव्य में होनेवाला कार्य पूरक हैं । यद्यपि विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय-समय उसकी अपनी स्वाभाविक योग्यता से होता है। पर तर्क व अनुमान से एवं संवेदना व मस्तिष्क चेतना क्योंकि द्रव्य में परिणमन सहज स्वाभाविक है। के रूप में आत्मा को समझने-समझाने का प्रयत्न परिणाम द्रव्य का धर्म है। वस्तु स्वयं परिणामी है। किया है; किन्तु कुल मिलाकर उनकी पहुँच भौतिक । एक अवस्था से अन्य अवस्था रूप होना वस्तु का है। विज्ञान मुख्य रूप से अन्तरिक्ष, काल, जड़ पदार्थ, पर्याय स्वभाव है। जिस समय जो परिणाम होता है गति और द्रव्य के विश्राम का प्रतिपादन करता है। उसके होने में यथार्थ में कोई कारण नहीं होता है, क्योंकि विश्व या लोक में इन पाँचों की प्रधानता है। वह निरपेक्ष होता है, लेकिन उपचार से काल को जैनधर्म स्पष्टरूप से छह द्रव्यों (जीव, पुद्गल, धर्म, । निमित्त कारण कहा जाता है। ऐसा कहे बिना अधर्म, आकाश और काल) के समूह को लोक व्यवहार नहीं चल सकता है। भेद करने के लिए, (Universe) कहता है। समय-समय की इकाई की संगणना करने के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक नोबल पुरस्कार विजेता यह आवश्यक है। जैनधर्म का सम्पूर्ण सिद्धान्त फाइनमैन (Feynman)ने अपनी पुस्तक में क्वाण्टम । (आगम) शास्त्र कारण के अनुसार कार्य की व्याख्या सिद्धान्त की अवक्तव्यता को 'क्वाण्टम व्यवहार' करता है : जो जीव जैसा भाव करता है वह उसका H तीर्थ-सौरभ wariता वर्ष : २५ ૧૨૬ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001295
Book TitleTirth Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages202
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Devotion, & Articles
File Size6 MB
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