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________________ सत्शास्त्रोंका परिचय उ. ६ : हाँ । नियमपूर्वक और नियमित रूपसे, सत्संगका अवलंबन लेकर ज्ञानकी प्राप्ति करना साधकके लिये अतिशय कल्याणकारी है । कुछ शास्त्र इधर-उधरसे पढ़ लेनेसे कल्याण नहीं है, अपितु धर्मके मुख्य तत्त्वोंको अच्छी तरहसे जानना और उनका श्रद्धान करना चाहिए। तब इसके फलस्वरूप विवेक उत्पन्न होनेसे साधकका अवश्य कल्याण होता है। प्र. ७ : सत्शास्त्रोंके परिचयका फल क्या है ? उ. ७ : सद्गुरु या सत्संगका आश्रय करके सत्शास्त्रका परिचय करनेसे अल्प कालमें महान फलकी प्राप्ति होती है । जब सद्गुरुका योग न हो तब सत्शास्त्रोंका अवश्य अवलंबन लेना, कि जिससे परमार्थमार्गमें चित्त लगा रहे। शास्त्रोंका माहात्म्य अपार है । परोक्ष वस्तुओंका ज्ञान करानेवाले, अनेक संशयोंका छेद करनेवाले, सत्य तत्त्वोंकों दिखानेवाले ये शास्त्र ही हैं । विशेषमें, वे अनुभवी पुरुषोंके वचन होनेसे साधकको मोक्षमार्गमें परम कल्याणरूप और प्रत्यक्ष मार्गदर्शक जैसा कार्य करने में भी समर्थ हैं। इस प्रकार, प्राथमिक मुमुक्षुताको प्रगटतासे लेकर अंतमें पूर्ण आत्मसमाधि प्राप्त करानेमें उत्तम प्रेरणा देनेकी शक्ति जिनमें है ऐसे शास्त्र, साधकको मोक्षमार्गमें एक अद्भुत और अनिवार्य अवलंबन हैं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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