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कहाँ से कहाँ
५५ कुछ ही दिनों में चिलातीपुत्र एक क्रू र दस्यु बन गया। उसका साहस और शौर्य देख कर पल्लीपति ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में चिलाती-पुत्र को पल्ली का स्वामी बना दिया। अब उसे अपना प्रतिशोध लेने का अवसर मिला। सुषुमा के रूप के प्रति चिलातीपुत्र कब से आसक्त था । उसने अपने साथियों से मंत्रणा करके योजना बनाई। और एक दिन अचानक धन्य-श्रेष्ठी के घर पर हमला बोल दिया गया।
चोरों ने धन के खूब गट्ठर बाँधे। किन्तु, चिलातीपुत्र को धन की उतनी लालसा नहीं थी, जितनी 'सुषुमा' की थी। उसने सुषुमा को अपने कब्जे में ले लिया। अन्य चोर सेठ के घर की मनचाही तबाही करते रहे, पर किसकी हिम्मत थी, जो उस क्र र दस्यु - दल का मुकाबला करे । चोरों के चले जाने के बाद धन्य श्रेष्ठी अनेक सिपाही, नगर कोतवाल और अपने पाँचों पुत्रों को साथ में लेकर चोरों का पीछा किया। धन चले जाने की सेठ को उतनी फिक्र नहीं थी, जितनी प्राणों से प्यारो लाडली बेटो 'सुषुमा' को ले जाने की थी । सुषमा क्या गई, सेठ का कलेजा निकल गया। वह द्रत गति से चोरों का पीछा करने लगा।
चोरों ने देखा- “सेठ नगर - रक्षक के साथ अनेक सशस्त्र राज-पुरुषों को लिए हमारा पीछा कर रहा है। वह बहुत ही खखार है । आज सेठ अपने आपे में नहीं है । वह
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