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५६ जैन इतिहास की प्रेरक कथाएँ साक्षात् मौत की तरह लपकता आगे बढ़ा आ रहा है । अब तो सेठ की पकड़ से बच निकलना बड़ा कठिन है । आज तो बस मरे। क्या किया जाए ?"-भागते चोरों ने परस्पर कानाफूसी की, और बस, धन के गट्ठर रास्ते में इधर-उधर फेंकने शुरू किए और जंगल में कोई सघन झाड़ियों में, तो कोई पुराने उजड़े खण्डहरों में, और कोई किसी गुफा में छिपने के लिए सिर-पर-पाँव रख कर दौड़ा।
राज-पुरुषों ने चोरों का पीछा करना छोड़ दिया और धन बटोरने में लग गए। पर धन्य सेठ ने पांचों पुत्रों को साथ लेकर चिलातीपुत्र का पीछा किया। वह सुषुमा को पीठ पर उठाए अब भी भागा जा रहा था। कभी झाड़ियों में छुपता, तो कभी किसी गड्ढे में । पर, देखा कि धन्य सेठ विकराल हुआ उसका पीछा कर रहा है । उससे बचना असम्भव है। मालूम होता है, वह आज उसे पकड़ कर ही दम लेगा । सुषुमा का भार काफी है। उसे उठाये तेज नहीं दौड़ा जा सकता। इतना विचार आया कि चिलातीपुत्र ने अपने प्राणों के मोह में 'सुषुमा' का सिर काट डाला । राग भी द्वष का रूप कैसे लेता है, इसका यह कितना सजीव उदाहरण है ? खून से लथपथ धड़ को तो वहीं डाला और सिर को अपने हाथ में लिए आगे को बेतहाशा भागता चला गया।
धन्य ने सुषुमा का धड़ पड़ा देखा, तो उसके हाथ-पाँव ढीले पड़ गए। वह सिर पोट कर रह गया। जिस पुत्री के
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