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________________ कहाँ से कहाँ ! दासीपुत्र होने से किसी ने उसका नामकरण भी नहीं किया। लोग सदा उसे मां के नाम से ही पुकारते रहे'चिलाती - पुत्र ।' चिलाती राजगृह के धन्य श्रेष्ठी की एक किरात-जाति की दासी थी। धन्य श्रेष्ठी के पाँच पुत्रों पर एक पुत्री थी 'सुषुमा' । बड़े लाड़ प्यार में पल रही थी वह । चिलातीपुत्र उसे खिलाया करता था। बाहर घुमाने को ले जाता, इधर-उधर के हास-परिहास करता, मनोरंजन करता और उसे बहुत ही स्नेह करता । सुषुमा भी चिलातीपुत्र से स्नेह करने लगी। दोनों बड़े हुए । एक दिन धन्य सेठ ने चिलातीपुत्र को सुषुमा के साथ एकान्त में अश्लील व्यवहार करते देखा, तो वह आग-बबूला हो उठा। चिलातीपुत्र को मार-पीट कर घर से निकाल दिया। सेठ के इस व्यवहार से उसे बड़ा क्षोभ हुआ, वह मन - ही - मन कट के रह गया। गरीब दासौ-पुत्र के भाग्य में सिवा अपमान और कष्ट के और था ही क्या ? चिलातीपुत्र ने क्षुब्ध होकर इसका बदला लेने की सोची। वह राजगृह से निकल कर 'सिंह-गुहा' नाम की एक चोर-पल्ली में पहुंच गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001291
Book TitleJain Itihas ki Prerak Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1987
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, N000, & N035
File Size4 MB
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