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ब्राह्मणत्वजातिनिरासः
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निमित्ताभिधेयसम्बद्धत्वाभावे व्यक्तीनामानन्त्येनाऽनन्तेनापि कालेन सम्बन्धग्रहणाघटनात् । तथा, वर्णविशेषाध्ययनाचारयज्ञोपवीतादिव्यतिरिक्तनिमित्तनिबन्धनं 'ब्राह्मणः इति ज्ञानम्, तन्निमित्तबुद्धिविलक्षणत्वात्, गवाश्वादिज्ञानवत्' इत्यतोपि तसिद्धिः । तथा 'ब्राह्मणेन यष्टव्यं ब्राह्मणो भोजयितव्यः' इत्याद्यागमाच्चेति ।
अत्रोच्यते । यत्तावदुक्तम्-प्रत्यक्षत एवास्य प्रतिपत्तिः; तत्र किं निर्विकल्पकात् विकल्पकाद्वा ततस्तत्प्रतिपत्तिः स्यात् ? न तावनिर्विकल्पकात्; तत्र जात्यादिपरामर्शाभावात्, भावे वा सविकल्पकानुषङ्गः । अन्यथा
पतला वस्त्र, पुराना नया वस्त्र, रेशमी सूती वस्त्र इत्यादि अनेक वस्त्रों में एक पटत्व सामान्य है वही शब्द और अर्थ का वाचक वाच्य सम्बन्ध कराता है, यदि पटों में पटत्व या 'पट:' इत्यादि पदों में पदत्व सम्बन्ध न हो तो अनन्तकाल में भी वाच्य वाचक सम्बन्ध ग्रहण में नहीं पा सकता है, अतः ब्राह्मणः यह सामान्य पद एक नित्य जाति रूप ब्राह्मणत्व की सिद्धि करता है जो कि ब्राह्मणत्व ब्राह्मण पुरुषों से भिन्न ही वस्तु रूप है।
नित्य ब्राह्मणत्व जाति की सिद्धि करने वाला द्वितीय अनुमान भी मौजूद है, अब उसीको बताते हैं- "यह ब्राह्मण है" ऐसा जो ज्ञान होता है वह न वर्ण विशेष जो गोरापन आदि है उससे होता है और न, अध्ययन, आचार, यज्ञोपवीत इत्यादि कारणों से होता है वह तो अन्य निमित्त से ( ब्राह्मणत्व से ) ही होता है, क्योंकि इन वर्ण प्रादि के ज्ञान से विलक्षण स्वरूप ब्राह्मण ज्ञान है, जैसे गो, अश्व इत्यादि का ज्ञान अन्य कारण से ( सामान्य से ) होता है। इस तरह अनुमान प्रमाणों से नित्य ब्राह्मण्य जाति का समर्थन हुआ । आगम प्रमाण से भी ब्राह्मणत्व को सिद्धि होती हैब्राह्मणों को पूजा अनुष्ठान को करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, इत्यादि अनादि वेद वाक्यों से ब्राह्मण जाति की अनादिता सिद्ध होती है।
जैन- अब यहां पर मीमांसक के इस अनादि ब्राह्मणत्व जाति का निरसन किया जाता है-अाप मीमांसक आदि ने कहा था कि ब्राह्मण्य जाति की प्रतीति प्रत्यक्ष से ही हो जाती है, सो उसमें हमारा प्रश्न है कि वह प्रत्यक्ष कौनसा है ? निविकल्प है या सविकल्प है ? निर्विकल्प प्रत्यक्ष से ब्राह्मणत्व जाति की प्रतीति हो नहीं सकती, क्योंकि इसमें जाति, नाम आदि का परामर्श नहीं होता है, यदि माना जाय तो
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