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________________ प्रमेयकमलमार्तण्डे ज्ञानपूर्वकोपदेशसहाया चास्य व्यक्तिय॑ञ्जिका, तत्रापि तत्सहायेति । न चात्राऽनवस्था; बीजाङ कुरादिवदनादित्वात्तत्तदू पोपदेशपरम्परायाः । तथानुमानतोपि ; तथाहि-ब्राह्मणपद व्यक्तिव्यतिरिक्तकनिमित्ताभिधेयसम्बद्ध पदत्वात्पटादिपदवत् । न चायमसिद्धो हेतुः; मिरिण विद्यमानत्वात् । नापि विरुद्ध :; विपक्षे एवाभावात् । नाप्यनैकान्तिकः; पक्षविपक्षयोरवृत्तः । नापि दृष्टान्तस्य साध्यवैकल्यम् ; पटादौ व्यक्तिव्यतिरिक्तक इसमें उभय अंशों का अवलंबन नहीं है । इस ब्राह्मण्य नित्य जाति की अभिव्यक्ति पिता आदि के ब्राह्मणत्व के ज्ञान से पुत्रादि में हुअा करती है, अर्थात् “इसका पिता ब्राह्मण था" इत्यादि उपदेश की सहायता से पुत्र में ब्राह्मणपना सिद्ध होता है, फिर उस पुत्र के ब्राह्मणत्व से आगे भी ब्राह्मणपने की सिद्धि होती रहती है, इस प्रकार मानने में अनवस्था की आशंका भी नहीं करना, क्योंकि यह ब्राह्मणत्व के उपदेश की परम्परा बीजांकुर के समान अनादि की है, अनुमान प्रमाण से भी ब्राह्मणत्व की सिद्धि होती है, अब इसी अनुमान को उपस्थित करते हैं-"ब्राह्मणः" यह एक पद है वह व्यक्ति से भिन्न कोई एक निमित्त रूप वाच्य से सम्बन्धित है, क्योंकि पद है, जैसे पटः, घटः इत्यादि पद अपने पट आदि से सम्बद्ध होते हैं, अभिप्राय यह है कि "ब्राह्मण है यह ब्राह्मण है" यह पद सामान्य का वाचक है, जब यह पद ( शब्द ) है तो उसका वाच्यार्थ अवश्य होना चाहिये, इस तरह ब्राह्मणत्व की अनुमान से सिद्धि होती है, इस अनुमान का पदत्व नामा हेतु प्रसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि धर्मी में हेतु विद्यमान रहता है। पदत्व हेतु विरुद्ध भी नहीं है, क्योंकि विपक्ष में नहीं जाता है, अनैकान्तिक भी नहीं है क्योंकि पक्ष और विपक्ष में प्रविरुद्ध वृत्ति वाला नहीं है, अर्थात् पक्ष के समान विपक्ष में नहीं जाता सिर्फ पक्ष में ही रहता है। पटादिवत दृष्टान्त साध्य विकल भी नहीं है, पट आदि पदार्थों में पट आदि व्यक्ति से व्यतिरिक्त एक निमित्त रूप वाच्य का सम्बद्धपना नहीं मानेंगे तो पट आदि व्यक्तियां अनन्त होने से उन सब व्यक्तियों का सम्बन्ध अनन्तकाल से भी ग्रहण नहीं होवेगा । भावार्थ- "पटः, ब्राह्मणः” इत्यादि पद हैं जिन शब्दों के आगे सु औ जस्, अथवा ति तस् अन्ति इत्यादि विभक्ति रहती हैं उन्हें पद कहते हैं "विभवत्यंतं पदम्" ऐसी पद शब्द की निरुक्ति है। इन पट ब्राह्मण इत्यादि पदों में नित्य एक पदत्व नामा सामान्य रहता है, पट आदि व्यक्तियां अनन्त हैं अर्थात् नीला वस्त्र, सफेद वस्त्र, मोटा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org..
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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