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प्रमेयकमलमार्तण्डे
श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणामाजितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमल कलंकेन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति ।। ( इति श्रीप्रभाचन्द्रविरचितः प्रमेयकमलमार्तण्ड: समाप्तः )
॥शुभं भूयात् ॥
प्रभाचन्द्र [मैं ग्रन्थकार] चिरकाल तक जयवंत वर्ते ॥४।। श्री भोजदेव राजा के राज्य में धारा नगरी के निवासी, पर अपर परमेष्ठी [पर परमेष्ठी अर्हन्त सिद्ध, अपर परमेष्ठी आचार्य उपाध्याय और साधुगण] के चरणकमलों को नमस्कार करने से अजित हुए निर्मल पुण्य द्वारा नष्ट कर दिया है सम्पूर्ण पापमलरूप कलंक को जिन्होंने ऐसे श्री प्रभाचन्द्र पंडित [प्राचार्य] द्वारा विरचित निखिल प्रमाण और प्रमेयों के स्वरूप को प्रकाशित करने वाला परीक्षामुख सूत्र का यह विवरण है ।
इसप्रकार श्रीप्रभाचन्द्र विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड नामा यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ।
॥ इति भद्रं भूयात् ॥
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