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________________ नयविवेचन एवं सप्तभंगी विवेचन का सारांश निराकृत प्रतिपक्षो वस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायोनयः प्रतिपक्ष का निराकरण न करके वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने वाले ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं । और जो प्रतिपक्ष का निराकरण करता है वह नयाभास है । अर्थात् एक ही वस्तु में परस्पर विरुद्ध रूप धर्म हुआ करते हैं जैसे अस्तित्व और नास्तित्व तथा नित्यत्व और अनित्यत्व आदि इन विरुद्ध धर्मों में एक धर्मांश को ग्रहण करते हुए भी उसके विरुद्ध या प्रतिपक्ष दूसरा धर्म है उसका निराकरण न करना समीचीन नय ज्ञान और प्रतिपक्ष धर्म का निराकरण करना मिथ्यानयज्ञान या नयाभास है । इसप्रकार संक्षेप से संपूर्ण नयों में एवं उनके प्रभेदों में सुघटित होने वाला नय का तथा नयाभास का सामान्य लक्षण है । नय के मूल दो भेद हैं द्रव्यार्थिक नय पर्यायार्थिक नय । द्रव्य जिसका प्रयोजन अर्थात् विषय है वह द्रव्यार्थिक और पर्याय जिसका प्रयोजन या विषय है वह पर्यायार्थिक नय है । द्रव्यार्थिक नय के नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय ऐसे तीन भेद हैं । पर्यायार्थिक नय के ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढनय एवंभूतनय ऐसे चार भेद हैं । इन सबका अबाधित लक्षण मूल में है । संकल्प मात्र का ग्राहक नैगम है अथवा धर्म धर्मी को गौण और मुख्यता से विषय करना नैगमनय है । जो धर्म और धर्मी में सर्वथा भेद मानता है वह नैगमाभास है । नैयायिक वैशेषिक धर्म और धर्मी में, [ गुण और गुणी में ] सर्वथा भेद स्वीकार करते हैं अतः वे नैगमाभासी हैं । सभी विशेषों को अंतर्लीन करके अविरोध रूप से सत् सामान्य का ग्राहक संग्रह नय है और इससे विपरीत विशेषों का विरोध करने वाला संग्रहाभास है अद्वैतवादी - ब्रह्माद्वैत, शब्दाद्वैत आदि तथा सांख्य संग्रहाभासी है । संग्रहनय द्वारा गृहीत प्रर्थों का विधि पूर्वक विभाग करना व्यवहारनय है और उक्त प्रर्थों में होनेवाले कथंचित् भेदों को सर्वथा काल्पनिक मानकर विभाग करना व्यवहाराभास है । वर्त्तमान क्षण का ग्राहक ऋजुसूत्र नय है । द्रव्यत्व का सर्वथा निषेध करके केवल क्षणमात्र रूप वस्तु को मानने वाला ऋजुसूत्राभास है । बौद्ध वस्तु को सर्वथा क्षणिक स्वीकारते हैं अतः ऋजुसूत्राभासी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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