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________________ ६६४ प्रमेयकमलमात्तंण्डे तथा 'करोति क्रियते' इति कर्तृकर्मकारकभेदेप्यभिन्नमर्थ त एवाद्रियन्ते । 'यः करोति किञ्चित् स एव क्रियते केनचित्' इति प्रतीतेः। तदप्यसाम्प्रतम् ; 'देवदत्तः कटं करोति' इत्यत्रापि कर्तृ कर्मणोर्देवदत्तकटयोरभेदप्रसङ्गात् । तथा, 'पुष्यस्तारका' इत्यत्र लिंगभेदेपि नक्षत्रार्थमेकमेवाद्रियन्ते, लिंगम शिष्यं लोकाश्रयस्वात्तस्य ; इत्यसंगतम् ; 'पटः कुटी' इत्यत्राप्येकत्वानुषंगात् । तथा, 'पापोऽम्भः' इत्यत्र संख्याभेदेप्येकमर्थं जलाख्यं मन्यन्ते, संख्याभेदस्याऽभेदकत्वाद्गुर्वादिवत् । तदप्य युक्तम् ; 'पटस्तन्तवः' इत्यत्राप्येकत्वानुषंगात् । तथा करोति क्रियते इनमें कर्तृकारक और कर्मकारक की अपेक्षा भेद होने पर भी वैयाकरण लोग इनका अभिन्न अर्थ ही करते हैं, जो करता है वही किसी द्वारा किया जाता है ऐसी दोनों कारकों में उन्होंने अभेद प्रतीति मानी है किन्तु वह ठीक नहीं यदि कर्तृकारक और कर्मकारक में अभेद माना जाय तो "देवदत्तः कटं करोतिः" इस वाक्य में स्थित देवदत्त कर्ता और कट कर्म इन दोनों में अभेद मानना पड़ेगा। तथा पुष्पः तारका: इन दो पदों में पुलिंग स्त्रीलिंग का भेद होने पर भी व्याकरण पंडित इनका नक्षत्र रूप एक ही अर्थ ग्रहण करते हैं, वे कहते हैं कि लिंग अशिष्य है-अनुशासित नहीं है, लोक के आश्रित है अर्थात् लिंग नियमित न होकर व्यवहारानुसार परिवर्तनशील है किन्तु यह असंगत है, लिंग को इसतरह माने तो पटः और कुटी इनमें भी एकत्व बन बैठेगा । तथा "पापः अंभः' इन दो शब्दों में संख्या भेद रूप बहुवचन और एक वचन का भेद होने पर भी वे इनका जल रूप एक अर्थ मानते हैं, वे कहते हैं कि संख्या भेद होने से अर्थभेद होना जरूरी नहीं है जैसे गुरुः ऐसा पद एक संख्या रूप है किन्तु सामान्य रूप से यह सभी गुरुपों का द्योतक है अथवा कभी बहुसन्मान की अपेक्षा एक गुरु व्यक्ति को 'गुरवः' इस बहुसंख्यात पद से कहा जाता है। सो वैयाकरण का यह कथन भी प्रयुक्त है, इसतरह तो पटः तन्तवः इन दो शब्दों का भी [ वस्त्र धागे ] एकार्थपना होवेगा। Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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