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तदाभासस्वरूपविचार:
तथा क्वचित्कार्ये व्यासक्तचित्तो माणवकैः कथितो द्वषाक्रान्तोप्यात्मीयस्थानात्तदुच्चाटनाभिलाषेणेदमेव वाक्यमुच्चारयति ।
मोहाक्रान्तस्तु सांख्यादि :
अङ्ग ल्यग्रे हस्तियूथशतमास्ते इति च ॥ ५३ ॥ उच्चारयति । न खल्वज्ञानमहामहीधराक्रान्तः पुरुषो यथावद्वस्तु विवेचयितुं समर्थः । ननु चैवंविधपुरुषवचनोद्भूतं ज्ञानं कस्मादागमाभासमित्याह---
अर्थ हे बालकों ! दौड़ो दौड़ो नदी के किनारे बहत से मोदक लडडलों के ढेर लगे हैं । इसतरह बालकों के साथ मनोरंजन करते हुए कोई बात करे तो वे वचन आगमाभास कहलाते हैं, क्योंकि इनमें सत्यता नहीं है । कभी कभी जब कोई व्यक्ति किसी कार्य में लगा रहता है उस समय बालक उसे परेशान करते हैं तो वह बालकों से पीड़ित हो क्रोध-द्वष में प्राकर अपने स्थान से बालकों को भगाने के लिये इसतरह के वचन बोलता है।
मोह-मिथ्यात्व से आक्रान्त हुप्रा पुरुष जो कि परवादी सांख्यादि है वह जो वचन बोलता है वे वचन आगमाभास हैं अब उसका उदाहरण देते हैं
__ अंगुल्यग्र हस्तियथशतमास्ते इति च ।। ५३।।
अर्थ-अंगुली के अग्रभाग पर हाथियों के सैकड़ों समूह रहते हैं, इत्यादि वचन एवं तत्सम्बन्धी ज्ञान सभी पागमाभास है, इसतरह के वचन अागमाभास इसलिये कहे जाते हैं कि इसतरह का वचनालाप अज्ञानरूपी बड़े भारी पर्वत से प्राक्रान्त हुए पुरुष ही बोला करते हैं, उनके द्वारा अज्ञान होने के कारण वास्तविक वस्तु तत्व का विवेचन नहीं हो सकता।
शंका- इसतरह मोहादि से अाक्रांत पुरुष के वचन से उत्पन्न हुना ज्ञान आगमाभास क्यों कहा जाता है ?
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