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________________ तदाभासस्वरूपविचार: ५४५ न मनसि, सपक्षस्य चैकदेशे सुखादी न घटादी, विपक्षस्य चाकाशादेनित्यस्यैकदेशे गगनादौ न परमाणुष्विति । पक्षसपक्षकदेशवृत्तिविपक्षव्यापको यथा-द्रव्याणि दिक्कालमनांस्यमूर्तत्वात् । अमूर्तत्वं हि पक्षस्यैकदेशे दिक्काले वर्तते न मनसि, सपक्षस्य च द्रव्यरूपस्यैकदेशे प्रात्मादौ वर्तते न घटादी, विपक्षे चाद्रव्यरूपे गुणादौ सर्व वेति । ___ पक्षविपक्षकदेशत्तिः सपक्षव्यापको यथा-अद्रव्याणि दिक्कालमनांस्यमूर्तत्वात् । अत्रापि प्राक्तनमेव व्याख्यानम् अद्रव्य रूपस्य गुणादेस्तु सपक्षतेति विशेषः। --- एकदेश-वचन में रहता है (परवादी की अपेक्षा वचन अमूर्त है) मन में नहीं। सपक्ष के एकदेश सुखादि में रहता है घटादि में नहीं, इसीतरह विपक्ष जो यहां नित्य है उस नित्यभूत अाकाशादि विपक्ष में अमूर्त्तत्व रहता है और परमाणुरूप विपक्ष में नहीं रहता अतः पक्ष त्रय एकदेश वृत्ति कहा जाता है। पक्ष और सपक्ष के एकदेश में रहे और विपक्ष में व्यापक हो वह छठा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-दिशाकाल और मन ये सब द्रव्य हैं, क्योंकि ये अमूर्त हैं, यहां अमूर्त्तत्व हेतु पक्ष का एकदेश जो दिशा और काल है उनमें तो रहता है और शेष एकदेश मन में नहीं रहता। सपक्ष का एकदेश जो द्रव्यरूप प्रात्मा आदि है उनमें रहता है और घट आदि द्रव्यरूप सपक्ष में नहीं। अद्रव्य जो गुणादि विपक्ष हैं उनमें सर्वत्र रहता है [ नैयायिकादि परवादी के यहां मूर्त्तत्व अमूर्त्तत्व का लक्षण इस प्रकार है- "इयत्ताअवच्छिन्नयोगित्वं मूर्त्तत्वं" "इतना है" इसप्रकार जिसका माप हो सके वह मूर्त्तत्व कहलाता है और इससे विपरीत जिसका इतनापना-परिमाण न हो सके वह अमूर्त्तत्व कहलाता है, इस लक्षण के अनुसार सभी गुण-रूप, रस, गंधादिक भी अमर्त्त ठहरते हैं, किंतु यह लक्षण सर्वथा प्रत्यक्ष बाधित है अस्तु, इसी लक्षण के अनुसार यहां सभी गुणों को अमूर्त कहा ] । पक्ष और विपक्ष के एकदेश में और सपक्ष में सर्वत्र व्यापक हो वह सातवां अनेकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे-दिशा, काल और मन अद्रव्य हैं-द्रव्य नहीं कहलाते, क्योंकि ये अमूर्त हैं। यहां पर भी पहले कहे हुए छठवें हेत्वाभास के समान सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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