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________________ तदाभासस्वरूपविचार: अपरिणामी शब्दः कृतकत्वाद्घटवत् ॥ १७ ॥ तथाहि - 'परिणामी शब्दोऽर्थं क्रियाकारित्वात्कृतकत्वाद् घटवत्' इति श्रर्थक्रियाकारित्वादयो हि तवो घटे परिणामित्वे सत्येवोपलब्धा, शब्देप्युपलभ्यमानाः परिणामित्वं प्रसाधयन्ति इति श्रपरिणामी शब्द:' इति पक्षस्यानुमानबाधा | आगमबाधितो यथा- ५२३ प्रेत्याऽसुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवदिति ।। १८ ।। आगमे हि धर्मस्याभ्युदयनिःश्रेयसहेतुत्वं तद्विपरीतत्वं चाधर्मस्य प्रतिपाद्यते । प्रामाण्यं चास्य प्रागेव प्रतिपादितम् । लोकबाधितो यथा अपरिणामी शब्दः कृतकत्वात् घटवत् ।।१७।। अर्थ - शब्द अपरिणामी होता है, क्योंकि वह किया हुआ है, जैसे घट किया हुआ है, ऐसा कहना श्रन्य अनुमान द्वारा बाधित होता है, अब उसी अनुमान को बताते हैं - शब्द परिणामी है, क्योंकि वह अर्थ क्रिया को करने वाला है तथा किया हुआ है, जैसे घट अर्थ क्रियाकारी और कृतक होने से परिणामी होता है, इसप्रकार के अनुमान द्वारा पहले के शब्द को अपरिणामी बतलाने वाला अनुमान बाधा युक्त होता है, क्योंकि अर्थ क्रियाकारित्व प्रादि हेतु घटरूप उदाहरण में परिणामित्व के होने पर ही देखे जाते हैं अतः शब्द में यदि वे अर्थ क्रियाकारित्व और कृतकत्व दिखाई देते हैं तो वे शब्द को परिणामीरूप सिद्ध कर देते हैं, इसलिये " परिणामी शब्द : " इत्यादि पक्ष में अनुमान से बाधा आती है । आगम बाधित पक्षाभास का उदाहरण प्रेत्याsसुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवत् ||१८|| Jain Education International अर्थ - परलोक में धर्म दुःख को देने वाला है, क्योंकि वह पुरुष के प्राश्रित है, जैसे धर्म पुरुष के आश्रित होने से दुःख को देनेवाला होता है, इसतरह कहना आगम बाधित है, आगम में तो धर्म को स्वर्ग और मोक्ष का कारण बताया है इससे उलटे जो अधर्म है उसे दुःखकारी नीच गति का कारण बताया है, अतः कोई धर्म को For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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