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________________ ४६४ प्रमेयक मलमार्त्तण्डे भावात् । न च सापि युक्ता ; परोपगतस्वरूपाणां प्रमाणादीनां यथास्थानं प्रतिषेधात् विपर्ययानध्य पदार्थों का यथास्थान क्रमशः मूल में ही निरसन कर दिया है, यहां अधिक नहीं कहना है । बात यह है कि वैशेषिक के छह पदार्थों में से एक द्रव्य नामा वस्तु तो है शेष गुण कर्म प्रादि सब पदार्थ मात्र काल्पनिक हैं क्योंकि इनका पृथक् पृथक् अस्तित्व नहीं है स्वयं वैशेषिक ने भी इनको पृथक् मानकर भी द्रव्य में गुण रहते हैं उसी में कर्म रहता है । विशेष भी नित्य द्रव्यों में रहते हैं ऐसी इनकी मान्यता है, द्रव्य में ही रूपादि गुण रहते हैं उसीमें उत्क्षेपणादि कर्म है, द्रव्य के ही साधारणपने को या अनुगत प्रत्यय को कराने वाला सामान्य पदार्थ है, समवाय का कार्य तो गुण आदि का द्रव्य में सम्बन्ध कराना है, और विशेष पदार्थ नित्य द्रव्य में रहता है इस तरह एक द्रव्यनामा पदार्थ के हो ये शेष गुणादिक स्वरूप या स्वभाव ठहरते हैं, इसलिये पदार्थों की छह संख्या बताना असत्य है, तथा यह एक शेष जो द्रव्यनामा पदार्थ है उसकी नो संख्या एवं लक्षण स्वरूपादि भी सिद्ध नहीं हो पाते जैसे दिशा नामा द्रव्य पृथक् सिद्ध नहीं होता इत्यादि अतः वैशेषिक का षट् पदार्थवाद निराकृत होता है । वैशेषिक मत में प्रभाव नामा सातवां पदार्थ भी माना है किन्तु असतूरूप होने से उसको षट् पदार्थों के साथ नहीं मिलाते । सद्भावरूप पदार्थ तो छह हैं और असद्भावरूप पदार्थ प्रभाव है ऐसा इन का मत है । छह पदार्थों के समान अभाव नामा पदार्थ भी पृथक्रूप से सिद्ध नहीं होता, वह भी द्रव्य का द्रव्यांतर में नहीं रहना इत्यादिरूप ही सिद्ध होता है । अभाव के विषय में प्रथम भाग के " अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भाव:" इस प्रकरण में बहुत कुछ कहा गया है अर्थात् उसका पृथक् अस्तित्व निराकृत किया है । नैयायिक मत में सोलह पदार्थ हैं प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रह स्थान ये इनके पदार्थ या तत्व हैं इनमें प्रमाण तो ज्ञानरूप है और ज्ञान गुण होने के कारण द्रव्य में अन्तर्भूत है, प्रमेय द्रव्यरूप है किंतु इसका लक्षण गलत बताते हैं, संशय तो ज्ञानरूप है । प्रयोजन कोई तत्व नहीं वह तो एक तरह से कार्य या अभिप्राय है । दृष्टान्त अनुमान ज्ञान का अंश है या जिस वस्तु को दिखाकर समझाया जाता है वह वस्तु है पृथक् तत्व नहीं है । सिद्धांत नामा पदार्थ तो एक तरह का मत है । अवयव तो अवयवी द्रव्य ही है श्रवयवी से न्यारा नहीं है, अवयव का अर्थ यदि अनुमान के अंग किया जाय तो वह ज्ञान या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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