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________________ समवायपदार्थविचारः ४४५ सम्बन्धे वा न स्वतोसौ; संयोगादीनामपि तथा तत्प्रसङ्गात् । परतश्चेदनवस्था। न च गुणादीनामाधेयत्वं निष्क्रियत्वात् । गतिप्रतिबन्धकश्चाधारो जलादेर्घटादिवत् । तथा न स्वरूपसंश्लेषः समवायो यतस्तस्मिन्सत्येकत्वमेव न सम्बन्धः । नापि पारतन्त्र्यम् ; अनिष्पन्नयोराधारस्यैवासत्त्वात् । 'स्वतन्त्रेण निष्पन्नयोश्च न पारतन्त्र्यम्'; इत्यप्यसमीचीनम् ; यतो न निष्पन्नयोरनिष्पन्नयोर्वा समवायः; स्वकारणसत्तासम्बन्धस्यैव निष्पत्तिरूपत्वात् । न हि निष्पत्तिरन्या समवायश्चान्यो येन पौर्वापर्यम् । एतेन 'रूपसंश्लेषः पारतन्त्र्यं वा' इत्याद्यपास्तम् । नापि समवायस्य सम्बन्धान्तरेण सम्बन्धो युक्तो येनानवस्था स्यात्, सम्बन्धस्य समानलक्षणसम्बन्धेन सम्बन्धस्यान्य त्रादृष्टे: संयोगवत् । अग्ने ऐसा माने तो पुन: प्रश्न होगा कि वह समवायी में स्वतः [अपने आप] सम्बद्ध है कि पर से संबद्ध है । स्वतः है तो संयोग आदि संबंध भी अपने आप संबद्ध हो जायेंगे । तथा यदि पर से संबद्ध होता है तो अनवस्था आती है । गुण आदि पदार्थ आधेयस्वरूप हैं ऐसा कहना भी बनता नहीं, क्योंकि गुण निष्क्रिय हुग्रा करते हैं, निष्क्रिय वस्तु आधेय नहीं होती। तथा अाधारभूत वस्तु गति की प्रतिबंधक [रोकने वाली] होती है, जैसे घट आदि आधारभूत पदार्थ जल, दूध ग्रादि के प्रवाहरूप गति को रोकता है । स्वरूपों का संश्लेष होना समवाय कहलाता है, ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि उसके होने पर तो एकत्व होगा न कि संबंध । पारतन्त्र्य को समवाय कहना भी शक्य नहीं, क्योंकि दो अनिष्पन्न पदार्थों में आधार का हो असम्भव है, स्वतन्त्रता से निष्पन्न दो वस्तुओं में तो पारतन्त्र होता ही नहीं । वैशेषिक द्वारा समाधान-निष्पन्न अनिष्पन्नों के समवाय होता है ऐसा नहीं मानते, निष्पत्ति तो स्वकारण सत्ता के सम्बन्ध को कहते हैं । निष्पत्ति अन्य और समवाय अन्य है ऐसा नहीं है जिससे कि पौर्वापर्य होवे ।। विशेषार्थ-जैनादि वादियों ने समवाय के विषय में पूछा कि दो संबंधी पदार्थों में समवाय रहता है ऐसा वैशेषिक मानते हैं सो वे दो सम्बन्धी पदार्थ अनिष्पन्न है कि निष्पन्न हैं ? किन्तु यह प्रश्न व्यर्थ है, पदार्थों को अपने कारणों के मिलने पर जो निष्पत्ति होती है वही समवाय है, निष्पत्ति से अन्य समवाय नहीं है, पदार्थ में सत्ता का समवाय होना ही निष्पत्ति है अथवा जो निष्पत्ति है वही समवाय है, अतः समवाय कब होता है इत्यादि प्रश्न गलत है । परवादी समवाय के विषय में शंका करते हैं कि रूपका संश्लेष होने को समवाय कहना या पदार्थों को परस्पर की परतन्त्रता को समवाय कहते हैं इत्यादि, सो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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