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कर्मपदार्थविचार का सारांश वैशेषिक के यहां कर्म-क्रिया के पांच भेद बताये है, उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकचन, प्रसारण, गमन, इनमें से पहले के चार कर्म नियत स्थान में क्रिया हेतुक हैं और गमन अनियत स्थान में क्रियाशील है। नीचे से ऊपर जाना या फेंकना उत्क्षेपण है, अर्थात् मूर्तिमान वस्तु का नीचे के प्रदेशों से विभाग होकर ऊपर के प्रदेशों में संयोग होना उत्क्षेपण कर्म है । ऊपर से नीचे वस्तु का आना अवक्षेपण कर्म है। सरल सीधी स्थित वस्तु को वक्र टेढी करने वाली क्रिया आकुचन क्रिया है जैसे सोधी अंगुली को ठेढी करना । टेढी अंगुली आदि द्रव्य को सरल करने वाली क्रिया प्रसारण कर्म है,
और गमन तो प्रसिद्ध ही है। इसप्रकार कर्मपदार्थ का वर्णन है। किन्तु यह बिलकुल हास्यास्पद है । कर्म तो क्रिया-परिस्पंद हलन है और वह द्रव्य हो है पृथक पदार्थ नहीं है, जब गमनशील पदार्थ देश से देशान्तर, संक्रमण करता है तब उसी को कर्म या क्रिया कहते हैं। यदि वस्तु की क्रिया आदि में भेद देखकर उनको पृथक् पदार्थ माना जायेगा तो भ्रमणादि क्रिया को भी कर्मपदार्थ मानना होगा फिर उसके पांच ही भेद नहीं रहेंगे । अतः कर्म पृथक् पदार्थ नहीं है किन्तु क्रिया परिणत द्रव्य ही है ऐसा मानना चाहिये सामान्य नाम का पदार्थ भी पृथक् नहीं है, क्योंकि सामान्य द्रव्य ही है इस बात को सामान्यवाद में सिद्ध कर आये हैं ।
। कर्मपदार्थवाद का सारांश समाप्त ।
TOSSEIR
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