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________________ वैशेषिक अभिमत गुरणपदार्थ के खंडन का सारांश जिसप्रकार वैशेषिक के द्रव्यपदार्थ की सिद्धि नहीं होती उस प्रकार गुण पदार्थ की भी सिद्धि नहीं होती है । उनके दर्शन में गुणों के चौवीस भेद माने जाते हैं-रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वष, प्रयत्न गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म और शब्द । पृथ्वी जल और अग्नि में रूपगुण रहता है । और वह चक्षु द्वारा ग्राह्य है। पृथ्वी और जल में रस गुण होता है और वह रसना द्वारा ग्राह्य है । गंध गुण केवल पृथ्वी में है और वह नासिका द्वारा ग्राह्य है । स्पर्श पृथ्वी आदि चारों द्रव्यों में है और वह स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य है। संख्या गुण एक तथा अनेक द्रव्य में रहता है, परिमाण गुण नित्य अनित्य दोनों प्रकार का है और अणु एवं स्कंधों में रहता है । पृथक्त्व गुण एक द्रव्य को अन्य द्रव्य से भिन्न करता है । अप्राप्त का प्राप्त होना संयोग है । प्राप्त का अप्राप्त भिन्न होना विभाग गुण है परत्व आदि अन्य गुणों के लक्षण सुप्रसिद्ध ही है । ___ इसप्रकार का वैशेषिक के गुणों का वर्णन तर्क संगत नहीं है । रूप रस आदि गुणों को पृथ्वी आदि में से किसी में चारों किसी में तीन इत्यादि मानना भी असंभव है, पहले भी सिद्ध कर आये हैं कि पृथ्वी आदि सबमें रूपादि चारों गुण विद्यमान रहते हैं। तथा इन गुणों को पृथ्वी आदि द्रव्य से भिन्न मानकर समवाय से संबद्ध करना भी शक्य नहीं है। द्रव्यों में गुण स्वयं स्वभाव से रहते हैं। संख्या, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, धर्म, अधर्म, परिमाण, शब्द ये गुण नहीं हैं अपितु द्रव्य का परिण मन मात्र है। प्रयत्न और संस्कार ये साक्षात् ही क्रिया स्वरूप है । शब्द द्रव्य की पर्याय है । धर्म अधर्म पुण्य पापरूप पुद्गल द्रव्य की पर्याय है। द्रवत्व, गुरुत्व स्नेह ये पुद्गल द्रव्य के गुण हैं किन्तु इनका लक्षण एवं प्राश्रय का वर्णन असत्य है । इच्छा द्वेष दुःख इत्यादि जीव के वैभाविक स्वभाव हैं । इसप्रकार गुण को पृथग्भूत पदार्थ मानना इत्यादि सिद्ध नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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