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प्रात्मद्रव्यवादः
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परीक्षिताभिधानम् ; सावयवत्वेन भिन्नावयवारब्धत्वस्य घटादाव यसद्धेः । न खलु घटादिः सावयवोपि प्राक्प्रसिद्धसमानजातीयकपालसंयोगपूर्वको दृष्टः, मृत्पिण्डात् प्रथममेव स्वावयवरूपाद्यात्मनोस्य प्रादुर्भावप्रतीतेः। न चकत्र पटादौ स्वावयवतन्तुसंयोगपूर्वकत्वोपलम्भात्सर्वत्र तद्भावो युक्तः, अन्यथा काष्ठे लोहलेख्यत्वोपलम्भावज्र पि तथाभावः स्यात् । प्रमाणबाधनमुभयत्र समानम् ।
किञ्च, अस्य तथाभूतावयवारब्धत्वम्-पादो, मध्यावस्थायां वा साध्येत ? न तावदादी; स्तनादौ प्रवृत्त्य भावानुषङ्गात्, तद्धत्वभिलाषप्रत्यभिज्ञानस्मरणदर्शनादेरभावात् । तदारम्भकावयवानां
जैन-यह कथन बिना सोचे किया है, सावयवपना भिन्न अवयवों से ही प्रारम्भ होता है ऐसा घट आदि में भी सिद्ध नहीं है, घटादि पदार्थ सावयव होने पर भी पहले ही प्रसिद्ध ऐसे समान जातीय कपाल के संयोग से सावयव नहीं कहलाते । किन्तु अपने उपादान कारणभूत मिट्टी के पिंड से उत्पन्न होते हुए स्वावयव स्वरूप ही उत्पन्न होते हैं। यदि कहीं वस्त्र आदि पदार्थ में ऐसा देखा जाता है कि अपने अवयव स्वरूप तन्तुओं का संयोग होकर वस्त्र बनता है, अतः वहां पर तो कह सकते हैं कि स्वावयव के संयोगपूर्वक अवयवी पदार्थ की उत्पत्ति हुई, किन्तु ऐसा सर्वत्र घट आत्मा
आदि में घटित नहीं कर सकते, अन्यथा काष्ट में लोह लेख्य-कुल्हाड़ी से टूटना देखकर वज्र में भी यह घटित करना होगा अर्थात् काठ लोहे से टूट जाता है तो वज्र को टूट जाना चाहिए ऐसा मानना होगा ? तुम कहो कि ऐसा मानने में प्रत्यक्ष से बाधा ग्राती है, तो आत्मा में भी संयोगपूर्वक अवयवीपना मानने में बाधा आती है अतः उसमें ऐसा सावयवपना नहीं मानना चाहिए । - तथा दूसरी बात यह है कि वैशेषिक ने कहा कि आत्मा सावयवी शरीर में प्रवेश करेगा तो स्वयं ही सावयवी बन जायगा और सावयवी होगा तो उसके अवयवों की किसी अन्य सजातीय अवयवों से उत्पत्ति होगी इत्यादि । इस पर जैन वैशेषिक से प्रश्न करते हैं कि समान जातीय भिन्न अवयवों से आत्माके अवयव बनने का प्रसंग प्रायेगा इत्यादि आपने कहा सो उक्त अवयव शुरु अवस्था में बनते हैं, या मध्य अवस्था में, यदि शुरु अवस्था में [गर्भावस्था में प्रात्मा सावयव बनता है ऐसा कहो तो इसका अर्थ पहले उसका अस्तित्व नहीं था, किंतु ऐसा मानने से जन्मे हुए बालक की स्तनपान
आदि में प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी क्योंकि स्तनपानका कारण इच्छा प्रत्यभिज्ञान स्मृति दर्शन आदि है और ये इच्छा आदिक पूर्व में प्रात्मा का अस्तित्व हुए बिना संभव नहीं।
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