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प्राकाशद्रव्यविचारः
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अथास्मदादिप्रत्यक्षत्वविशेषणविशिष्टस्य विभुद्रव्य विशेषगुणत्वस्यात्रासम्भवान्न व्यभिचारः। ननु मा भूद्व्यभिचार:; तथापि साकल्येन हेतोविपक्षाद्वयावृत्त्यसिद्धिः । विपक्षविरुद्धं हि विशषणं ततो हेतुनिवर्तयति । यथा सहेतुकत्वमहेतुकत्वविरुद्ध तत: कादाचित्कत्वम् । न चास्मदादिप्रत्यक्षत्वमक्षणिकत्वविरुद्धम् ; प्रक्षणिकेष्वपि सामान्यादिषु भावात् । ततो यथास्मदादिप्रत्यक्षा अपि
मानना उन्हीं के सिद्धान्त से गलत होता है, यदि धर्म अधर्म [पुण्य-पाप] क्षणिक हैं तो उनसे अन्य जन्म में फल की प्राप्ति हो नहीं सकती। इसतरह शब्दसे शब्दकी उत्पत्ति होना, उसमें क्षणिकता होना आदि बातें सिद्ध नहीं होती है।
वैशेषिक-शब्दः क्षणिकः अस्मदादि प्रत्यक्षत्वे सति विभुद्रव्य विशेष गुणत्वात् ऐसा अनुमान दिया था सो इसतरह का अस्मदादि प्रत्यक्ष होकर विभुद्रव्य का विशेष गुण होना रूप हेतु धर्म अधर्म में नहीं पाया जाता, अतः व्यभिचार नहीं आता है। अभिप्राय यह है कि जो हम जैसे सामान्य व्यक्ति के प्रत्यक्ष हो ऐसा विभुद्रव्य का विशेष गुण हो वह क्षणिक होता है, शब्द हमारे प्रत्यक्ष होकर विभुद्रव्य का विशेष गुण है अतः क्षणिक है किन्तु धर्मादिक हमारे प्रत्यक्ष नहीं है अतः उनसे हेतु व्यभिचरित नहीं होता । शब्द गुण की बात पृथक् और धर्मादिगुण की बात पृथक् है ।
___ जैन-ठीक है, धर्मादि के साथ व्यभिचार मत होवे, किन्तु अस्मदादि प्रत्यक्षत्व विशेषण वाला यह विभुद्रव्य का विशेष गुणरूप हेतु अपना साध्य जो क्षणिकत्व है उसका विपक्ष जो अक्षणिकत्व है उससे पूर्णरूप से व्यावृत्त होता ही नहीं, विशेषण तो इसलिये दिया जाता है कि विपक्ष से हेतु को व्यावृत्त करे, विपक्ष से विरुद्ध होने से ही वह उससे हेतु को हटाता है, जैसे सहेतुक विशेषण अहेतुक विपक्ष से हेतु को हटाता है अतः उसके द्वारा कादाचित्करूप हेतु स्वसाध्य को [अनित्यत्व को] सिद्ध कर सकता है, किन्तु ऐसा विशेषण वाला आपका हेतु नहीं है ।
भावार्थ-हेतु का प्रयोग यदि कोई विशेषण को लिये हुए है तो उसका काम यही है कि वह अपने विशेष्य जो हेतु है उसे विपक्ष से व्यावृत्त करे, जैसे किसी ने कहा कि अनित्यः शब्दः, सहेतुकत्वे सति कादाचित्कत्वात्, घटवत् ।। शब्द अनित्य है, क्योंकि वह सहेतुक है तालु आदि कारणों से बना है तथा कादाचित्क है- कभी कभी होता है, जिसतरह घट है, इस अनुमान वाक्य में हेतु कादाचित्कत्व है उसमें यदि "सहेतुकत्वे
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