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( १८ ) जाता है तो भी वादी का पराजय होना संभव है । इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि अपने पक्ष के ऊपर प्रमाण के ऊपर प्रतिवादी द्वारा दिये गए दोषों को निराकरण कर सकना ही विजय का हेतु है ।
योग का कहना है कि वाद द्वारा स्वमत की विजय नहीं होती, वाद वीतराग कथा रूप है जो कि गुरु और शिष्य के मध्य में होता है। स्वमत की विजय जल्प और वितंडा द्वारा होती है। जल्प का लक्षण योग इस प्रकार करते हैं-यथोक्तोपपन्नश्छलजातिनिग्रहस्थान साधनोपलंभो जल्पः । अर्थात् प्रमाण तर्क
आदि से युक्त एवं छल, जाति, निग्रहस्थान, साधन, उपालंभ से युक्त जल्प होता है । वादी पुरुष जब अपने पक्ष की सिद्धि एवं पर पक्ष का खंडन करने के लिये छल [ असत् उत्तर देना छल है ] आदि के द्वारा प्रतिवादी को निरुत्तर करने का प्रयास करता है तब उसका वह वचनालाप जल्प कहलाता है। प्रतिवादी को निरुत्तर करने का एक दूसरा तरीका यह है कि अपना पक्ष रक्खे बिना केवल सामने वाले के पक्ष में दूषण देते जाना। इस तरीके को वितडा कहते हैं।
जैनाचार्य ने योग के उपर्युक्त मंतव्य का निरसन किया है कि प्रतिवादी को निरुत्तर करने मात्र से स्वमत की विजय नहीं होती, विजय के लिये तो अपना मत सभापति प्रादि के समक्ष सिद्ध करना होगा और यह स्वपक्ष सिद्धि अनुमान प्रयोग में चतुर पुरुष द्वारा वाद से भली प्रकार की जाती है अतः वाद ही विजय का हेतु है न कि जल्प और वितंडा । इस प्रकरण में योगाभिमत तीन प्रकार का छल, चौबीस प्रकार की जाति एवं बावीस प्रकार के निग्रह स्थानों का विस्तृत विवेचन है । अंत में प्राचार्य ने यह सिद्ध किया है कि निग्रह स्थान या छलादि द्वारा वादी या प्रतिवादी को चुप भले ही किया जाय किन्तु विजिगोषु पुरुष सभा में सपक्ष सिद्ध करके ही विजयी होते हैं । नय विवेचन :
नयों के सात भेद हैं --नगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ एवं भूत । इस प्रकरण में प्रभाचन्द्राचार्य ने प्रत्येक नय के लक्षण के साथ-साथ उस उस नय सम्बन्धी तदाभास का विवेचन लक्षण में कर दिया है अर्थात् नंगमनय, नैगमनयाभास, संग्रहनय, संग्रहन याभास इत्यादि । सात नयों में से पूर्व के चार नय अर्थ नय कहलाते हैं और अंत के तीन नय शब्दनय कहलाते हैं । इन सातों ही नयों में पूर्व पूर्व के नय बहुत विषय वाले हैं
और आगामी नयों के कारण स्वरूप हैं तथा अग्रिम नय अपने पूर्व नय की अपेक्षा अल्प विषय वाले हैं एवं कार्य स्वरूप हैं । जैसे-नैगमनय संग्रह नय की अपेक्षा बहुत विषय युक्त है एवं संग्रह नय का कारण है । ऐसे ही आगे समझना । यहां पर नय सप्तभंगी एव प्रमाण सप्तभगी वर्णन भी किया है। सप्तमगी में सात ही भंग क्यों हैं इस प्रश्न का अच्छा समाधान दिया है। पत्र वाक्य विचार :
स्वमत या पक्ष को सिद्ध करने के लिये वादी प्रतिवादी प्रत्यक्ष सामने होकर वाद करते हैं तथा कभी पत्र द्वारा भी वाद करते हैं। जब वादी अपना पक्ष पत्र द्वारा प्रतिवादी के निकट प्रेषित करता है वह पत्र किस प्रकार का होना चाहिये इसका विवेचन इस प्रकरण में है।
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