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________________ १८६ प्रमेयकमलमार्तण्डे चैकत्वमुच्यते, तस्मिश्च सति प्रतिभासभेदो विरुद्धधर्माध्यासश्च न स्यात्, विभिन्नविषयत्वात्ततस्तयोः । यदि च तन्तुभ्यो नार्थान्तरं पट:; तहि तन्त वोपि नांशुभ्योर्थान्तरम्, तेपि स्वावयवेभ्यः इत्येवं तावच्चिन्त्यं यावनिरंशा: परमाणवः, तेभ्यश्चाभेदे सर्वस्य कार्यस्यानुपलम्भ : स्यात् । तस्मादर्थान्तरमेव पटात्तन्तवो रूपादयश्च प्रतिपत्तव्या: । तथा विभिन्नकर्तृकत्वात्तन्तुभ्यो भिन्न: पटो घटादिवत् । विभिन्नशक्तिकत्वाद्वा विषाऽगदवत् । पूर्वोत्तरकालभावित्वाद्वा पितापुत्रवत् । विभिन्नपरिमाणत्वाद्वा बदरामलकवत् । तथा तन्तुपटादीनां तादात्म्ये 'पटः तन्तवः' इति वचनभेदः, 'पटस्य भावः पटत्वम्' इति षष्ठी, तद्धितोत्पत्तिश्च न प्राप्नोतीति । तादात्म्य तो एकत्व को कहते हैं यदि यह एकत्व पटादि में होता तो भिन्न भिन्न प्रतिभास और विरुद्ध धर्माध्यास नहीं होता, क्योंकि ये विभिन्न विषयवाले हरा करते हैं । तथा यदि तन्तुओं से वस्त्र भिन्न नहीं है तो तन्तु भी अपने अवयव जो अंश रूप हैं उनसे भिन्न नहीं रहेंगे तथा वे अंश भी अपने अवयवों से अभिन्न होंगे, इसतरह जब तक निरंश परमाणु रह जाते हैं तबतक अवयवों से अवयवी को अभिन्न बताते जाना। वे परमाणु भी अभिन्न हैं तो सब कार्य का अभाव हो जायेगा। इस आपत्ति को हटाने के लिये पट से तन्तु तथा रूपादि गुण भिन्न हैं ऐसा मानना चाहिए । तथा तन्तु और पट इन दोनों के कर्ता भी भिन्न-भिन्न हुअा करते हैं अतः वे अत्यन्त भिन्न हैं, जैसे पट घट गृह विभिन्न कर्तृत्व के कारण अत्यन्त भिन्न हैं। तन्तुओं की शक्ति और वस्त्र की शक्ति पृथक्-पथक् है इस कारण से भी दोनों भिन्न हैं, जैसे कि विष और औषधि में पृथक्-पृथक् शक्ति रहने के कारण भिन्नता है, तन्तु और वस्त्र में पूर्व तथा पश्चात् भावीपना होने के कारण भी विभिन्नता है, जैसे पिता और पुत्र में पूर्वोत्तर काल भावीत्व होने से विभिन्नपना है। इन तन्तु और पट में परिमाण अर्थात् माप भी अलग अलग है, तन्तु अल्प परिमाणवाले हैं और पट महान परिमाण वाला है अतः इनमें बेर प्रांवले की तरह भिन्नता है । तन्तु और पट इत्यादि अवयव-अवयवी में तादात्म्य माना जायगा तो पट: ऐसा एक वचन और "तन्तवः" ऐसा बहुवचन रूप निर्देश नहीं हो सकता, “पटस्यभावः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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