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________________ १४३ प्रथाग्निधूमस्वरूप द्वयग्राहिज्ञानद्वयानन्तरभा विस्मरण सहकारीन्द्रियजनितविकल्पज्ञाने तद्द्वयस्य पूर्वापरकालभाविनः प्रतिभासात्कार्यकारणभावनिश्चयो भविष्यतीत्युच्यते तदप्युक्तिमात्रम्; चक्षुरादीनां तज्ज्ञानजननासामर्थ्ये स्मरणसव्यपेक्षाणामपि जनकत्वविरोधात् । न हि परिमलस्मरणसव्यपेक्षं लोचनं 'सुरभि चन्दनम्' इति प्रत्ययमुत्पादयति । तत्सव्यपेक्षलोचनव्यापारानन्तरमेते कार्यकारणभूता इत्यवभासनात्तद्भावः सविकल्पक प्रत्यक्ष प्रसिद्धः ; इत्यप्यसमीचीनम् ; गन्ध सम्बन्ध सद्भाववादः अनन्तर पर प्रतिभास होता है । उसे भी कार्यकारण सम्बन्धका ग्राहक मानना पड़ेगा । क्रम से होने वाले दो पदार्थों के प्रतिभासों का समन्वय करने वाला कोई एक ज्ञान है ऐसा भी कह नहीं सकते क्योंकि ज्ञान हो चाहे प्रमेय हो सर्वत्र ही प्रतिभास के भेद से ही भेद व्यवस्था हुआ करती है । शंका -- अग्नि और धूम के स्वरूप को ग्रहण करने वाले दो ज्ञानों के अनंतर एक ऐसा ज्ञान होता है कि जिसमें स्मरण सहायक है, एवं जो इन्द्रिय से पैदा हुआ है, उस ज्ञान में पूर्वापर काल भावी अग्नि धूम का प्रतिभास हो जाता है, अतः उस ज्ञान द्वारा कार्यकारण भाव का निश्चय हो जायगा ? समाधान --- यह कथन ठीक नहीं है, जब चक्षु प्रादि इन्द्रियां उस ज्ञान को पैदा करने में असमर्थ हैं तब स्मरण की सहायता मिलने पर भी वे उस ज्ञान को पैदा नहीं कर सकती । क्या चक्षु इन्द्रिय स्मरण की सहायता लेकर "यह चंदन सुगंधित है" इस प्रकार का निश्चय करा सकती है ? नहीं करा सकती । शंका- स्मरण सहायक नेत्र ज्ञान कारण भाव सम्बन्ध है ऐसा प्रतीत होता है से सिद्ध है ? Jain Education International होने के अनंतर इन धूम अग्नि में कार्य अतः वह सम्बन्ध सविकल्प प्रत्यक्ष प्रमाण समाधान - यह बात असत् है, इसतरह कहो तो नेत्र भी है ऐसा मानना पड़ेगा ? क्योंकि गंध के स्मरण की सहायता होने के अनंतर "चंदन सुगंधित है" रूप अति प्रसंग न हो जाय इसलिये ज्ञान से नहीं जाना जाता । ज्ञान का विषय गंध युक्त नेत्र के व्यापार ऐसा प्रतिभास होता है । इसतरह विषय संकर मानना होगा कि कार्य कारण भाव संबंध प्रत्यक्ष For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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