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( १३ )
हैं अर्थात् श्रवयव अंशरूप और अवयवी ग्रंशवाला होता है इसप्रकार इनमें विरुद्ध धर्मत्व है तथा अवयव पूर्ववर्ती श्रीर अवयवी उत्तरवर्ती होते हैं अतः इनमें अत्यन्त भेद स्वीकार करना चाहिये । सामान्य और विशेष दोनों स्वतंत्र पदार्थ हैं इनका समवाय द्वारा द्रव्य में संबंध हो जाने से दोनों प्रभिन्न मालूम होते हैं । पदार्थ छः हैं, द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय । द्रव्य के नौ भेद हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, मन, दिशा, श्राकाश, श्रात्मा और काल । गुरण के चौबीस भेद हैं, कर्म पांच प्रकार का है, सामान्य दो भेद वाला, विशेष अनेक रूप एवं समवाय सर्वथा एक रूप होता है । इसप्रकार वैशेषिक के यहां पदार्थों की व्यवस्था है किन्तु यह सब प्रसिद्ध है समीचीन प्रमाण द्वारा बाधित होती है । सामान्य श्रौर विशेष को परस्पर में भिन्न मानना या उन भिन्न धर्मों का द्रव्य में समवाय मानना दोनों ही गलत है। विभिन्न प्रतिभास होने मात्र से वस्तु में भेद मानना युक्ति युक्त नहीं है, एक ही आत्मा या श्रग्नि प्रादि वस्तु प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाणों द्वारा ग्रहण होकर विभिन्न प्रतिभासित होती है किन्तु उनको भिन्न तो नहीं मानते ? अर्थात् एक ही अग्नि प्रत्यक्ष से प्रतिभासित होती है और अनुमान से भी प्रतिभासित होती है फिर भी उसे एक ही मानते हैं, ठीक इसीप्रकार सामान्य और विशेष धर्म विभिन्न रूपेन प्रतीत होते हैं फिर भी उन्हें एक पदार्थ निष्ठ ही स्वीकार करते हैं । अवयव और श्रवयवी को सर्वथा पृथक मानना भी प्रयुक्त है, क्या वस्त्र तंतुनों से पृथक है ? अवयव अवयवी धर्म धर्मी इत्यादि में कथंचित् भेद और कथंचित् प्रभेद होता है । पदार्थ को कथंचित् भेदाभेदरूप मानने से संकर, व्यतिकर, संशय, विरोध, वैयधिकरण्य, अवस्था प्रभाव और अप्रतिपत्ति ये ग्राठ दोष आते हैं ऐसा कहना भी प्रसिद्ध है, इन आठ दोषों का स्वरूप एवं भेदाभेदात्मक या सामान्य विशेषात्मक वस्तु में इन दोषों का किसप्रकार अभाव है इन सबका वर्णन मूल में विशदत्याहुआ है ।
परमाणु रूप नित्य द्रव्य विचार :
योग परमाणु को नित्य मानते हैं उनका कहना है कि पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के परमाणु सर्वथा नित्य ही होते हैं, हां ! इन पृथ्वी आदि का विघटन होकर पुनः जो परमाणु रूप हुआ है वह अनित्य है । यह योग मान्यता प्रयुक्त है स्कंध का विघटन होकर परमाणु की निष्पत्ति होती है, परमाणु को सर्वथा नित्य मानने पर तो उनके द्वारा पृथ्वी आदि कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती क्योंकि जो कूटस्थ नित्य होता है परिवर्तन असंभव है, परिवर्तन होना ही अनित्य कहलाता है, जब परमाणु पृथ्वी आदि परिवर्तन कर सकते तब उन्हें सर्वथा नित्य किस प्रकार मान सकते हैं ? नहीं मान सकते ।
अवयवी स्वरूप विचार :
अवयवों से श्रवयवी [ शाखा, पत्ते आदि श्रवयव हैं और वृक्ष अवयवी हैं, ऐसे ही तन्तु श्रवयव और वस्त्र श्रवयवी है ] सर्वथा पृथक् है ऐसा वैशेषिक आदि का कहना है किन्तु यह प्रतीति त्रिरुद्ध है, वृक्ष, शरीर, वस्त्र, स्तंभ प्रादि कोई भी अवयवो अपने अपने अवयवों से भिन्न देश में प्रतीत नहीं होता ।
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