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सिद्ध किया है कि उक्त जाति आकाशवत् एक नित्य व्यापी न होकर सदश सदाचार क्रिया परिणामादि के निमित्त से होने वाली अनेक अनित्य अव्यापक रूप है।
क्षणभंगवाद:
बौद्ध प्रत्येक वस्तु क्षणिक मानते हैं, घट, पट, मनुष्यादि पर्यायें एवं जीव अजीव आदि द्रव्य सभी क्षण. भंगुर हैं --एक समय में उत्पन्न होकर नष्ट हो जाते हैं। पदार्थ को जानने वाली बुद्धि भी क्षणिक है। वस्तु के नष्ट होने के लिये कारण की अपेक्षा नहीं होती अर्थात् वह स्वतः ही नष्ट हो जाती है। "सर्वं क्षणिक सत्त्वात्" सत्त्वरूप होने से सभी वस्तु क्षणिक है ऐसा अनुमान प्रमाण से भी सिद्ध होता है।
___ बौद्ध की उपर्युक्त मान्यता प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित है, पदार्थों का ध्रौव्य प्रत्यक्ष से ही सिद्ध है, पूर्वोत्तर पर्यायों में जिस प्रकार विभिन्नता ज्ञात होती है उसी प्रकार उन्हीं पर्यायों में द्रव्य का अन्वयपना प्रतीत होता है जैसे स्थास कोश घट आदि पर्यायों में मिट्टी का अन्वय ( ध्रौव्य ) रहता है । पदार्थ को जानने वाली बुद्धि किसी अपेक्षा [ ज्ञेय के परिवर्तन की अपेक्षा ] भले क्षणिक हो किंतु बुद्धिमान् प्रात्मा तो नित्य है।
पदार्थ के नाश को निर्हेतुक मानना भी प्रयुक्त है, प्रत्यक्ष से देखा जाता है कि घट लाठी प्रादि की चोट से नष्ट होता है । क्षणिकत्व की सिद्धि के लिये दिया गया 'सत्त्वात्' हेतु क्षणिकत्व को सिद्ध न करके नित्यत्व को ही सिद्ध करता है। प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षरण नष्ट होती है और वह भी निरन्वयरूप से तब तो उपादान निमित्त और सहकारित्व बन नहीं सकता। वस्तु स्वयं अपने सजातीय सन्तान को उत्पन्न करके नष्ट होती है तो कम से कम उक्त वस्तु को स्थिति तीन क्षण की तो हो ही जाती है । निरन्वय विनाशशील वस्तु में अन्वय व्यतिरेक रूप प्रतिभास असम्भव है किन्तु ऐसा प्रतिभास प्रत्येक वस्तु में होता है। अत: पदार्थ को क्षणिक नहीं मान सकते। वस्तु में अर्थ पर्याय की दृष्टि से परिवर्तन अवश्य होता है, किंतु समूलचूल नाश नहीं होता, जैसे बालक युवा वृद्ध इन अवस्थानों में एक ही मनुष्य परिवत्तित होता है अत: मनुष्य की दृष्टि से वह अवस्थित है और बाल आदि अवस्था की दृष्टि से उत्पन्न प्रध्वंसी है ।
संबंधसद्भाववाद:
बौद्ध पदार्थों में परस्पर में किसी प्रकार का भी सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते, उनका कहना है कि प्रत्येक वस्तु अन्य वस्तु से सर्वथा पृथक् है उनमें संयोग या संश्लेष आदि सम्बन्ध असम्भव है। परमाणु अन्य परमाणु से कोई बन्ध-सम्बन्ध नहीं, स्कन्ध की कल्पना कल्पनामात्र है । एक परमाणु का दूसरे परमाणु से सम्बन्ध इसलिये नहीं है कि वह परमाणु अन्य परमाणु के साथ एक देश से करता है तो परमाणु को सांश मानना पड़ेगा और यदि एक परमाणु का दूसरे परमाणु से सर्व देश से सम्बन्ध माने तो उक्त स्कन्ध परमाणु मात्र रह जायगा । वस्तुओं में कार्य कारण सम्बन्ध भी पारमार्थिक नहीं है।
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