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( १० ) बौद्ध सामान्य धर्म को स्वीकार नहीं करते उनका कहना है कि पदार्थ के सामान्य और विशेष धर्म एक ही इंद्रिय ज्ञान के द्वारा जाना जाता है अतः एक है, तथा यह काल्पनिक धर्म है वास्तविक धर्म तो विशेष है। प्राचार्य ने समझाया कि जो एक इन्द्रिय ज्ञान द्वारा ग्राह्य है वह एक है ऐसा माने तो धूप और वात को एक मानना होगा ? क्योंकि दोनों एक ही इन्द्रिय द्वारा ग्राह्य हैं।
__ सामान्य को नित्य, सर्वगत, एक अखण्ड स्वभाव वाला मानते हैं । गायों में गोत्व, घटों में घटत्व, मनुष्यों में मनुष्यत्व रूप जो सामान्य धर्म पाया जाता है उसको योग के मतानुसार सर्वथा एक माना जायगा तो बहुत भारी प्रापत्ति पाती है-अनेक गायों का गोत्व एक है तो एक गाय के मर जाने पर उसका गोत्व नष्ट हना मानते हैं तो सामान्य का नित्यपना सिद्ध नहीं होता, और उक्त गोत्व धर्म का नाश नहीं मानते तो उस विवक्षित गाय के मरने पर भी उस स्थान पर गोत्व दिखायी देना चाहिए ? इसीप्रकार घटत्व, मनुष्यत्व आदि सामान्य धर्म की बात है। यदि वस्तु का यह सामान्य धर्म सर्वगत अर्थात् सर्वत्र व्यापक है तो मनुष्यों का मनुष्यपना गो का गोपना घटों का घटपना उन्हीं निश्चित स्थानों में क्यों प्रतीत होता है ? अन्यत्र क्यों नहीं प्रतीत होता ? यदि मनुष्य का मनुष्यपना अाकाशवत् व्यापक है तो उसे अवश्य ही यत्र तत्र सर्वत्र प्रतिभासित होना चाहिए ! किन्तु ऐसा होता नहीं अतः सामान्य धर्म का सर्वगतपना प्रसिद्ध है । मीमांसक सामान्य और विशेष धर्म में सर्वथा तादात्म्य स्वीकार करते हैं, किन्तु यह मान्यता भी प्रयुक्त है, जिनका सर्वथा तादात्म्य होगा वे विभिन्न रूप से प्रतिभासित नहीं हो सकेंगे, गायों का गोत्व अर्थात् सास्नादिमानपना रूप सामान्य धर्म मौर धवली, शबली प्रादि विशेष धर्म विभिन्न रूपेन प्रतीत होते हैं अत: सामान्य और विशेष धर्मों में सर्वथा तादात्म्य न मानकर कथंचित् तादात्म्य मानना चाहिए।
इसप्रकार वस्तुगत सामान्य गुण, धर्म या स्वभाव अनित्य, असर्वगत, अनेक रूप ही सिद्ध होता है।
सामान्य को काल्पनिक मानना या व्यापक नित्य मानना किसप्रकार प्रतीति विरुद्ध है इस बात का मूल ग्रंथ में विशद रीत्या विवेचन किया है।
ब्राह्मणत्व जाति निरास :
नैयायिकादि प्रवादी ब्राह्मणों में ब्राह्मणत्व नामकी एक अखंड व्यापक नित्य स्वभाव वाली जाति मानते हैं, उनकी यह जाति भी सामान्य के समान प्रसिद्ध है, बात यह कि जो सर्वत्र व्यापक है एवं नित्य है उसका अनेकों में पृथक् पृथक् रूप से रहना, अपने आधार के नष्ट होने पर नष्ट होना सर्वथा अयुक्त है।
नित्य प्रादि विशेषण विशिष्ट ब्राह्मण्य सिद्ध करने के लिये दिये गये अनुमान प्रमाण बाधित होने से नयायिकादि के अभीष्ट की सिद्धि नहीं हो पाती। ब्रह्मा के मुख से जिनकी उत्पत्ति हो उन मनुष्यों में ब्राह्मण्य सन्निविष्ट होने की कल्पना बड़ी ही मजेदार है। परवादी के इस ब्राह्मणत्व जाति का प्राचार्य ने निरसन करके
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