SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षणभंगवादः किञ्च, अत्रान्यानपेक्षत्वमात्रं हेतु:, तत्स्वभावत्वे सत्यन्यानपेक्षत्वं वा ? प्रथमपक्षे यवभरनेकान्त हेतो:, शाल्यंकु रोत्पादनसामग्रीसन्निधानावस्थायां तदुत्पादनेऽन्यानपेक्षाणामप्येषां तद्भावनियमाभावात् । द्वितीयपक्षे तु विशेष्यासिद्धो हेतु :; तत्स्वभावत्वे सत्यप्यन्यानपेक्षत्वासिद्ध ेः। नह्यन्त्या कारणसामग्री स्वकार्योत्पादनस्वभावापि द्वितीयक्षणानपेक्षा तदुत्पादयति, दहनस्वभावो वा वह्निः करतलादिसंयोगानपेक्षो दाहं विदधाति । भागे विशेषणासिद्धं च तत्स्वभावत्वे सत्यन्यानपेक्षत्वम् ; शृङ्गोत्थशरादीनां क्षणिकस्वभावाभावात् । ८७ है । तथा "विनाशं प्रति श्रन्यानपेक्षत्व" जो हेतु है वह ग्रन्यानपेक्षत्व - मात्र है अथवा "तत्स्वभावत्वे सति श्रन्यानपेक्षत्व" है । प्रथम पक्ष - विनाश के प्रति अन्य की अपेक्षा मात्र नहीं रखना ऐसा हेतु बनाते हैं तो यव बीजादि के साथ हेतु की ग्रनैकान्तिकता होगी, कैसे सो बताते हैं- जो अन्य की अपेक्षा नहीं रखता वह विनाश स्वभाव नियत है ऐसा कथन व्यभिचरित है, क्योंकि शालि के अंकुर को उत्पन्न करनेवाली सामग्री निकट होने पर उनके उत्पादन में अन्य की अपेक्षा नहीं रखने वाले भी इन यव बीजों के तद् भाव नियम विनाश स्वभाव का नियम नहीं रहता 1 दूसरापक्ष—“तत् स्वभावत्वे सति प्रन्यानपेक्षत्व" विनाश स्वभाव होने पर अन्य अनपेक्षपना है । इस तरह का हेतु बनावे तो वह विशेष्य- असिद्ध नामा सदोष हेतु कहलायेगा | क्योंकि वस्तु में विनाश स्वभाव सिद्ध होने पर भी वह विनाश अन्य निरपेक्ष ही है ऐसा सिद्ध नहीं है, यह बात भी है कि अंतिम कारण सामग्री स्व कार्य की उत्पादन स्वभाव वाली है किन्तु वह भी द्वितीय क्षण की अपेक्षा बिना स्व कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकती, जैसे कि जलाने का स्वभाव वाली अग्नि हाथ प्रादि के संयोग की अपेक्षा किये बिना जलाने का कार्य नहीं कर सकती । " तत् स्वभावत्वे सति अन्यानपेक्षत्व” हेतु भागा सिद्ध विशेषण वाला भी है, क्योंकि सभी पदार्थ विनाश स्वभाव नियत है, ऐसा पक्ष है किन्तु महिष आदि के सींग से बनाये हुए बाण आदि में क्षणिक स्वभाव का प्रभाव है । श्रतः सभी पदार्थ क्षणिक स्वभावी विनाश स्वभावी हैं ऐसा कहना गलत पड़ता है । Jain Education International दूसरी बात यह विचारणीय है, यदि मान लेवें कि विनाश प्रहेतुक है तथापि जब लाठी आदि के व्यापार के अनंतर उपलब्ध हो तब उसे मानना चाहिये न कि उत्पत्ति के अनंतर ही अर्थात् घट का विनाश लाठी की चोट लगने पर होता हुआ 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy