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सर्वज्ञत्ववादः DEBRER::8888:66:6::BikeR:8:::8::
ननु चाशेषार्थज्ञातुस्त(ज्ञानस्यत्त)ज्ज्ञानवता कस्यचित्पुरुषविशेषस्यैवासम्भवात्कथं तज्ज्ञानसम्भवः ? तथाहि-न कश्चित्पुरुषविशेषः सर्वज्ञोस्ति सदुपलम्भकप्रमाणपञ्चकागोचरचारित्वाद्वन्ध्यास्तनन्धयवत् । न चायमसिद्धो हेतुः, तथाहि-सकलपदार्थवेदी पुरुषविशेषः प्रत्यक्षेण प्रतीयते, अनुमानादिप्रमाणेन वा ? न तावत्प्रत्यक्षेण; प्रतिनियतासन्नरूपादिविषयत्वेन अन्यसन्तानस्थसंवेदनमात्रेप्यस्य सामथ्यं नास्ति, किमङ्ग पुनरनाद्यनन्तातीतानागतवर्तमानसूक्ष्मादिस्वभावसकलपदार्थसाक्षात्कारिसंवेदनविशेषे तदध्यासिते पुरुषविशेषे वा तत्स्यात् ? न चातीतादिस्वभावनिखिलपदार्थ
मीमांसकः-जैन ने आवरण कर्म के नाश से पूर्ण ज्ञान प्रगट होता है ऐसा सिद्ध किया तथा आवरण की सिद्धि की किन्तु संपूर्ण पदार्थों को जानने वाला ज्ञान और उस ज्ञान से संयुक्त कोई पुरुष विशेष ही संभव नहीं है, अतः ऐसे ज्ञान को सिद्ध करना कैसे शक्य है ? इसी को बताते हैं— कोई भी पुरुष विशेष सर्वज्ञ नहीं है, क्योंकि वह सत्ताग्राहक पांचों प्रमाणों के गोचर नहीं होता, जैसे वन्ध्यापुत्र नहीं होता। यह सत्ताग्राहक प्रमाणों के अगोचर होना रूप हेतु प्रसिद्ध नहीं है। कैसे सो बताते हैंसंपूर्ण पदार्थों को जानने वाला जो पुरुष है वह प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है या अनुमान से ? प्रत्यक्ष प्रमाण से वह पुरुष विशेष जाना जाता है ऐसा कहना तो शक्य नहीं, यह प्रत्यक्ष तो प्रतिनियत तथा निकटवर्ती रूप, रस आदि को जानता है, इस इंद्रिय प्रत्यक्ष में अन्य प्रात्मा में होने वाले ज्ञान को जानने की भी सामर्थ्य नहीं है तो फिर जो ज्ञान अतीत अनागत एवं वर्तमान कालीन सूक्ष्मादि स्वभावों से संयुक्त अनंतानंत संपूर्ण पदार्थों को साक्षात्कार करने वाला है ऐसे विशिष्ट ज्ञान को एवं तद्विशिष्ट पुरुष विशेष को [सर्वज्ञ को] कैसे जान सकता है ? [अर्थात् नहीं जान
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