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________________ २४ प्रमेयकमलमार्तण्डे एवं तहि तत्तयोः प्रकाशकमपि न स्य दित्याह अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकम् ॥ ८॥ ताभ्यामर्थालोकाभ्यामजन्यमपि तपोः प्रकाशकम् । अत्रैवार्थ प्रदीपवदित्युभयप्रसिद्ध दृष्टान्तमाह प्रदीपवत् ॥ ९॥ न खलु प्रकाश्यो घटादिः स्वप्रकाशकं प्रदीपं जनयति, स्वकारणकलापादेवास्योत्पत्तः । 'प्रकाश्याभावे प्रकाशकस्य प्रकाशकत्वायोगात्स तस्य जनक एव' इत्यभ्युपगमे प्रकाशकस्याभावे प्रकाश्यस्यापि प्रकाश्यत्वाघटनात् सोपि तस्य जनकोऽस्तु। तथा चेतरेत राश्रयः-प्रकाश्यानुत्पत्ती यहां कोई कहता है कि पदार्थ और प्रकाश ज्ञान में कारण नहीं हैं तो उनको ज्ञान प्रकाशित भी नहीं करता होगा ? सो उस शंकाका निवारण करने हेतु सूत्रावतार होता है अतज्जन्यमपि तत्प्रकाशकम् ॥ ८ ॥ सूत्रार्थः-ज्ञान पदार्थ और प्रकाश से उत्पन्न न होकर भी उनको प्रकाशित करता है । इस विषय में वादी प्रतिवादीके यहां प्रसिद्ध ऐसा दृष्टांत देते हैं प्रदीपवत् ॥ ६ ॥ अर्थः-जैसे दीपक घटादि पदार्थसे उत्पन्न न होकर भी घटादिको प्रकाशित करता है, वैसे ही ज्ञान पदार्थादिसे उत्पन्न न होकर भी उनको प्रतिभासित करता है प्रकाशित होनेयोग्य घटादि पदार्थ अपनेको प्रकाशित करनेवाले दीपकको उत्पन्न नहीं करते हैं, वह दीपक तो अपने कारण कलापसे ( बत्ती, तेल आदिसे ) उत्पन्न होता है । प्रकाशित करने योग्य वस्तुके अभावमें प्रकाशकका प्रकाशकपना ही नहीं रहता, अत: प्रकाश्य जो घटादि वस्तु है वह उस प्रकाशकका जनक कहलाता है ? इसतरह कोई परवादी बखान करे तो इसके विपरीत "प्रकाशक के अभावमें प्रकाश्यका प्रकाश्यपना हो नहीं रहता, अतः प्रकाशक ( दीप ) प्रकाश्य ( घटादि ) का जनक है" ऐसा भी मानना पड़ेगा ? फिर तो इतरेतराश्रय दोष होगा, अर्थात् प्रकाश्यके उत्पन्न न होनेपर प्रकाशक उत्पन्न नहीं होगा और उसके उत्पन्न नहीं होनेसे प्रकाश्य भी उत्पन्न नहीं होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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