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प्रमेयकमलमार्तण्डे केशोण्डुकादिज्ञानमपि । एतवास्तु विशेषः-किञ्चित्सत्परं गृह्णाति संवादसद्भावात्किञ्चिदसद्विसंवादात्, न चैतावता जात्यन्तरत्वेनानयोरन्यत्वं ताभ्यां व्यभिचाराभावो वा। अन्यथा 'प्रयत्नानन्तरीयका शब्दः कृतकत्वाद् घटादिवत्' इत्यादेरप्यप्रयत्नानन्तरोयविद्य द्वनकुसुमादिभिर्न व्यभिचारः, ताल्वादिदण्डादिजनिताच्छन्दघटादेस्तद्विपरीतस्य विद्यु दारेन्यत्वात् । न चान्यस्य व्यभिचारेऽन्यस्यापि व्यभिचारोऽतिप्रसङ्गात् । तथाप्यत्र व्यभिचारे प्रकृतेपि सोऽस्तु विशेषाभावात् ।
ज्ञानके विषय में संवादका सद्भाव है, और कोई ज्ञान अविद्यमान अवास्तविक पदार्थ का ग्राहक है, क्योंकि उसके विषयमें विसंवाद देखा जाता है। किन्तु इतनेमात्रसे इन दोनोंमें सर्वथा भेद नहीं मान सकते, अन्यथा शब्दको अनित्य माननेवाले जनादिके द्वारा उपस्थित किये जाने वाले अनुमानमें परवादी व्यभिचार नहीं दे सकेंगे, अर्थात शब्द प्रयत्नके अनंतर उत्पन्न होता है (पक्ष) क्योंकि वह किया हुआ है (हेतु) जैसे घटादि पदार्थ (दृष्टांत) इस अनुमानमें परवादी दोष देते हैं कि वनके पुष्प, विद्युत आदि अनित्य होकर भी बिना प्रयत्नके होते हैं अतः शब्दको भी बिना प्रत्यत्नके होना मानना चाहिये ? किन्तु परवादीका ऐसा अनुमानमें दोष देना असतु है, क्योंकि तालु आदि के द्वारा उत्पन्न हुआ शब्द एवं दण्ड प्रादिके द्वारा उत्पन्न हुए घट आदिक जो पदार्थ हैं उनसे विपरीत ही विद्युत एवं वनपुष्पादिक है, अर्थात् वन पुष्प मादिकी जाति भिन्न है और घटादिकी जाति भिन्न है । वनपुष्पादिमें बिना प्रयत्नके होनेका व्यभिचार देख घट आदि में उसको लगाना तो अतिप्रसंगका कारण होगा। यदि विद्युत प्रादि पदार्थ और घट आदि पदार्थ इनमें भिन्न भिन्न जातिपना होते हुए भी अन्यका व्यभिचार अन्यमै लगा सकते हैं तो यहाँ प्रकरण प्राप्त ज्ञानके विषयमें भी उसको घटित कर सकते हैं। अर्थात् विपर्यय आदि ज्ञान बिना पदार्थके हैं वैसे सत्य ज्ञान भी विना पदार्थके होते हैं भिन्न जातिपना उभयत्र समान है, कोई विशेषता नहीं है ।
विशेषार्थ:-नैयायिक अभिमत अर्थकारणवादका प्रकरण चल रहा है, ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है ऐसा बौद्धका कहना है, एवं ज्ञानके लिये पदार्थ भी निमित्त हुमा करते हैं ऐसा नैयायिक का कहना है, इस मान्यता का निरसन करते हुए आचार्यने कहा कि नेत्र रोगीको पदार्थके प्रभावमें भी ज्ञान होता है तथा संशयादि ज्ञान पुरुषत्व आदि विशेष धर्म के अभाव में भी प्रादुर्भूत होते हुए देखे जाते हैं, अतः ज्ञानमें पदार्थरूप कारण मानना बाधित होता है। प्राचार्यके इस कथन पर परवादीने कहा कि
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