SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्द नित्यत्ववादः ५१६ तदपनोदकाश्चान्ये, तेषां शक्तिनानात्वं कल्पनीयम्, नास्मत्पक्षे । पौद्गलिकत्वं च यथावसरं गुण निषेधप्रक्रमे प्रसाधयिष्यामः। तत्सिद्धं घटस्य चक्रादिव्यापारकार्यत्ववच्छब्दस्यताल्वादिव्यापारकार्यत्वमिति साधूक्तम्---'प्राप्तवचनम्' इत्यादि। पुद्गल (जड़) द्रव्य की पर्याय है। अंत में यह निश्चय होता है कि जैसे घट कुभकार, चक्र आदि के व्यापार का कार्य है वैसे शब्द तालु आदि के व्यापार का कार्य है। इसलिये आगम प्रमाण लक्षण करते हुए श्रीमाणिक्यनंदी आचार्य ने ठीक ही कहा कि"आप्तवचनादिनिबंधनमर्थज्ञानमागमः' प्राप्त पुरुष के वचनादि के निमित्त से होनेवाला पदार्थ का ज्ञान आगम प्रमाण कहलाता है इत्यादि । विशेषार्थ- शब्द के विषय में विवाद है कि वह नित्य है कि अनित्य, मीमांसक शब्द को नित्य मानते हैं, उनका कहना है कि शब्द को अनित्य मानेंगे तो उनके उत्पत्ति कारण बतलाना होगा, उत्पन्न होकर श्रोता के पास कैसे गमन करेंगे, मार्ग में वायु, वृक्ष, पर्वतादि से टकरायेंगे। तथा शब्द अनित्य है तो उत्पन्न होते ही नष्ट हो जायेंगे, अथवा कुछ समय तक ठहर भी जाये तो भी जिस शब्द में बाल्यकाल में संकेत हुअा था वह आगे युवा काल आदि में नहीं रहता अतः उस शब्द को सुनते ही अर्थ बोध होता है वह कैसे घटित होगा। शब्द में द्रवत्व नहीं होने से अनेक शब्दों में परस्पर संश्लेष भी कैसे हो, तथा वक्ता के मुख से निकले हुए क्रमिक एक एक शब्द एक ही किसी श्रोता के कर्ण में प्रविष्ट होगा क्योंकि अव्यापक एवं एक है अतः अन्य अनेक श्रोताओं को उस वक्ता का व्याख्यान कैसे सुनाई देगा इत्यादि । प्रभाचन्द्राचार्य ने कहा कि ये शब्द विषयक प्रश्न पाप मीमांसक के अभिव्यंजक वायु में ठीक इसी तरह लागु होते हैं, अर्थात् व्यंजक वायु जब वक्ता के पास शब्द को प्रगट करने जायेगी तब मार्ग के वृक्ष आदि से टकराकर बिखर जायगी। शब्दों का प्रावृत होना मानते हैं सो उनका प्रावरण कौन है, उनको कौन दूर करेगा, आवारक के दूर होते ही सारे वर्ग सुनाई देने चाहिए क्योंकि वर्ण नित्य एवं व्यापक है ? गकार आदि वर्ण विश्वभर में एक एक हैं तो पृथक् पृथक रूप से हजारों श्रोताओं को एक साथ कैसे सुनाई देते हैं यदि शब्द व्यापक है तो एक विवक्षित स्थान पर सर्वांगरूप से अर्थात् समूचेरूप से कैसे उपलब्ध होगा? बंबई से लेकर देहली तक लगी हुई रेल की पटरी एक जगह सर्वांग रूप से कैसे उपलब्ध हो ? विशाल मंडप पर छाया हुआ वस्त्र एकत्र पूर्ण रूपेन कैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy