________________
शब्दनित्यत्ववादः
निष्ठताधिगमः । नाप्यनुमानेन; श्रस्याऽध्यक्ष पूर्व कत्वेनाभ्युपगमात् । तस्य चात्राऽप्रवृत्तावनुमानस्याप्यप्रवृत्तिः । तन्न लक्षितलक्षणया विशेषप्रतिपत्तिः सम्भवति, इति वाच्यवाचकयोः सामान्य विशिष्टविशेषरूपतोपगन्तव्या धूमादिवत् ।
ननु धूमादेः सामान्यसद्भावात्तद्विशिष्टस्योक्तन्यायेन गमकत्वमस्तु, शब्दे तु तस्याभावात्कथं तद्विशिष्टस्य गमकत्वम् ? तदभावश्च वर्णान्तरग्रहणे वर्णान्तरानुसन्धानाभावात् । यत्र हि सामान्यमस्ति तत्रैकग्रहणेऽपरस्यानुसन्धानं दृष्टं यथा शाबलेयग्रहणे बाहुलेयस्य । वर्णान्तरे च गादौ गृह्यमाणे न कादीनामनुसन्धानम्; तदसाम्प्रतम्; गादौ हि वर्णान्तरे गृह्यमाणे यदि 'अयमपि
४७५
विशेषों का एक साथ प्रतिभास नहीं होता है । सभी विशेषों को जाने बिना उनका सामान्य के साथ सदा रहने वाला संबंध भी नहीं जाना जा सकता, अन्यथा अतिप्रसंग होगा । सामान्य विशेष में निष्ठ है ऐसा प्रत्यक्ष द्वारा क्रम से प्रतिभासित होता है इस तरह का दूसरा पक्ष भी ठीक नहीं क्योंकि व्यक्तियां असंख्य हैं उनको क्रम से जानना शक्य नहीं है । सामान्य का विशेष में निष्ठ रहना क्वचित् कदाचित् जानने में प्राता है ऐसा कहे तो सर्वत्र हमेशा सामान्य विशेष में निष्ठ रहता है इस प्रकार का ज्ञान नहीं हो सकेगा । इसलिये निर्णय हुआ कि प्रत्यक्ष द्वारा सामान्य का विशेष में निष्ठ रहना नहीं जाना जाता । अनुमान के द्वारा भी वह निष्ठता ग्रहण में नहीं प्राती क्योंकि अनुमान भी प्रत्यक्ष पूर्वक होता है जब इस विषय में प्रत्यक्ष प्रवृत्त नहीं होता तो अनुमान भी प्रवृत्त नहीं होगा । श्रतः लक्षित लक्षणा से विशेष की प्रतिपत्ति होना संभव नहीं है । इस प्रकार वाच्य वाचक में सामान्य से विशिष्ट विशेष रूपता रहती है ऐसा स्वीकार करना ही ठीक है, जैसे धूम प्रादि हेतु में मानी है ।
मीमांसक - धूम आदि में तो सामान्य का सद्भाव है, अतः वह उस विशिष्ट साध्य का गमक हो सकता है, किन्तु शब्द में तो सामान्य का सद्भाव नहीं है अतः वह उस विशिष्ट अर्थ का ज्ञापक किस प्रकार हो सकता है ? शब्द में सामान्य का प्रभाव इसलिये है कि किसी वर्ग को ग्रहण करते हैं तो उसमें अन्य वर्ण का अनुसंधान नहीं दिखायी देता है, जहां पर सामान्य रहता है वहां पर एक को ग्रहण करते ही अन्य का अनुसंधान होता हुआ देखा जाता है, जैसे शाबलेय ग्रहण करने पर बाहुलेय का ग्रहण हो जाता है, वर्णान्तर ग्रहण में ऐसी बात नहीं होती, गकार आदि के ग्रहण हो जाने पर भी ककार आदि ग्रहण में नहीं आते हैं अतः इनमें अनुसंधान का प्रभाव है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org