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________________ ३६२ प्रमेय कमलमार्तण्डे ननु प्रज्ञाकराभिप्रायेण भाविरोहिण्युदयकार्यतया कृत्तिकोदयस्य गमकत्वात्कथं कार्यहेतो नास्यान्तर्भाव इति चेत् ? कथमेवमभूद्भरण्युदयः कृत्तिकोदयादित्यनुमानम् ? अथ भरण्युदयोपि कृत्तिकोदयस्य कारणं तेनायमदोषः; ननु येन स्वभावेन भरण्युदयात्कृत्तिकोदयस्तेनैव यदि शकटोदयात्; जैन-तो फिर “भरणीका उदय एक मुहूर्त पहले हो चुका क्योंकि कृतिका का उदय हो रहा है" इस अनुमानकी किस प्रकार प्रवृत्ति होगी ? अर्थात् इस हेतुका किसमें अंतर्भाव करेंगे ? बौद्ध-भरणीका उदयभी कृतिकोदयका कारण है अतः उक्त अनुमान प्रवृत्त नहीं होना आदि दोष नहीं पायेगा । __ जैन-जिस स्वभाव द्वारा भरणी उदयसे कृतिकोदय हुआ उसी स्वभाव द्वारा रोहिणी उदयसे कृतिकोदय हया है क्या ? यदि हां तो भरणी उदयके बाद जैसे कृतिका उदय होता है वैसे रोहिणी उदयके बाद भी कृतिका उदय होना चाहिए ? तथा जिस प्रकार रोहिणी उदयके पहले कृतिका का उदय होता है उस प्रकार भरणी उदयके पहले भी कृतिका उदय होना चाहिए था ? तथा इसप्रकार अतीत और अनागत कारणोंका एक कार्य में व्यापार होना स्वीकार करते हैं तो आस्वाद्यमान रसका अतीत रस और भावीरूप दोनों ही कारण हो सकते हैं ? ( क्योंकि अतीत और अनागत कारणोंका एकत्र कार्यमें व्यापार होना स्वीकार कर लिया ) फिर वर्तमानरूप की अथवा अतीतरूपकी प्रतीति संभावित नहीं रहेगी। अभिप्राय यह है कि वर्तमान कार्य में अनागत हेतु होता है तो उसका अवबोध किस प्रकार होगा ? अर्थात् नहीं हो सकता । अतीतकाल और एक काल अर्थात् वर्तमानकाल है जिनका उन पदार्थोंका बोध होता है ( कारणहेतुसे ) न कि अनागतोंका । ऐसा बौद्ध अभिमत प्रमाणवात्तिक ग्रथमें कहा है यह भी उक्त कथनसे प्रयुक्त हो जाता है । बौद्ध-कृतिकोदयरूप हेतु भरणी उदय और रोहिणी उदयमें से किसी एकका कार्य है ? जैन-तो उससे भरणी उदय और रोहिणी उदयमें से किसी एककी ही प्रतीति होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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