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________________ प्रमेयकमलमार्तण्डे ... किं पुनः परार्थानुमानमित्याह परार्थमित्यादि परार्थं तु तदर्थ परामर्शिवचनाज्जातम् ।।५।। तस्य स्वार्थानुमानस्यार्थः साध्यसाधने तत्परामशिवचनाज्जातं यत्साध्यविज्ञानं तत्परार्थानुमानम् । ननु वचनात्मकं परार्थानुमानं प्रसिद्धम्, तच्चोक्तप्रकारं साध्य विज्ञानं परार्थानुमानमिति वर्णयता कथं सगृहीतमित्याह तद्वचनमपि तद्ध तुत्वात् ।।५६।। तद्वचनमपि तदर्थपरामशिवचनमपि तद्धे तुत्वात् ज्ञानलक्षणमुख्यानुमानहेतुत्वादुपचारेण परार्थानुमानमुच्यते । उपचारनिमित्तं चास्य प्रतिपादकप्रतिपाद्यापेक्षयानुमान कार्यकारणत्वम् । परार्थं तु तदर्थ परामशि वचनाज्जातम् ॥५५।। सूत्रार्थ- स्वार्थानुमानके अर्थका परामर्श करनेवाले वचनसे जो उत्पन्न होता है उसे परार्थानुमान कहते हैं । स्वार्थानुमानके अर्थभूत साध्यसाधनको प्रकाशित करने वाले वचनको सुनकर जो साध्यका ज्ञान होता है वह परार्थानुमान है । शंका-परार्थानुमान वचनात्मक होता है, साध्यके ज्ञानको परार्थानुमान कहते हैं ऐसा वर्णन करते हुए उक्त वचनात्मक परार्थानुमान का संग्रह क्यों नहीं किया है ? इस शंकाका समाधान करते हैं तद् वचनमपि तद्धेतुत्वात् ।।५६।। सूत्रार्थ – स्वार्थानुमान का प्रतिपादक वचन भी कथंचित् परार्थानुमान कहलाता है, क्योंकि वह वचन परार्थानुमान ज्ञानमें कारण पड़ते हैं। साध्य साधनभूत अर्थके द्योतक वचन भी ज्ञान लक्षणभूत मुख्य अनुमानका निमित्त होनेके कारण उपचारसे परार्थानुमान कहलाता है। प्रतिपादक पुरुष और प्रतिपाद्य शिष्यादिकी अपेक्षासे इस अनुमानमें कार्य कारणभाव होनेसे यह उपचार निमित्तिक है। साध्यसाधन वचनका प्रतिपादन करने वाले पुरुषका ज्ञान लक्षणभूत अनुमान है कारण जिसका उसको कहते हैं "तद् वचन"। तथा प्रतिपाद्य शिष्यादि पुरुषके ज्ञान लक्षणरूप अनुमानका जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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