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________________ ३८४ प्रमेयकमलमार्तण्डे दृष्टो हि विधिनिषेधरूपतया वादिप्रतिवादिभ्यामविप्रतिपत्त्या प्रतिपन्नोऽन्तः साध्यसाधनधर्मो यत्रासौ दृष्टान्त इति व्युत्पत्तेः । अथ कोऽन्वयदृष्टान्तः कश्च व्यतिरेकदृष्टांत इति चेत् - साध्यव्याप्त साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोन्वयदृष्टान्तः ॥४८॥ यथाग्नौ साध्ये महानसादिः । साध्याभावे साधनाभावः यत्र कथ्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ॥४९॥ यथा तस्मिन्नेव साध्ये महाह्रदादिः। अथ को नाम उपनयो निगमनं वा किमित्याह हेतोरुपसंहार उपनयः ॥५०॥ प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ॥५१॥ सूत्रार्थ-दृष्टांतके दो भेद हैं अन्वय दृष्टांत और व्यतिरेक दृष्टांत । वादी और प्रतिवादी द्वारा विना विवादके विधि प्रतिषेधरूपसे देखा गया है साध्य साधन धर्म जहां पर उसे "दृष्टान्त" कहते हैं इसप्रकार दृष्टान्त शब्दका व्युत्पत्ति अर्थ है दृष्टौ अन्तौ-साध्यसाधन-धर्मों यस्मिन् स दृष्टान्तः । अन्वय दृष्टान्त कौन है और व्यतिरेक दृष्टान्त कौन है ? इसप्रकार प्रश्न होने पर कहते हैं __ साध्य व्याप्तं साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वय दृष्टान्तः ॥४८॥ सूत्रार्थ-जहां पर साध्यसे व्याप्त साधनको दिखाया जाता है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं । जैसे अग्निको साध्य करने पर रसोई घर का दृष्टांत देते हैं । साध्याभावे साधनाभावः यत्रकथ्यते स व्यतिरेक दृष्टान्तः ।।४।। सत्रार्थ-जहांपर साध्यके अभावमें साधनका प्रभाव दिखलाया जाता है उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। जैसे उसी अग्निरूप साध्य करने में महाह्रद ( सरोवर ) का दृष्टान्त दिया जाता है। उपनय किसे कहते हैं और निगमन किसे कहते हैं सो बताते हैं हेतोरुपसंहार उपनयः ।।५०।। प्रतिज्ञायास्तु निगमनम् ।। ५१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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