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________________ ३८० प्रमेयकमलमार्तण्डे तत्पुत्रत्वस्य भावान्न व्याप्तिः; तहि साकल्येन साध्यनिवृत्तौ साधननिवृत्तिनिश्चयरूपाद्बाधकादेव व्याप्तिप्रसिद्धरलं दृष्टान्तकल्पनया। व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिः तत्रापि तद्विप्रतिपचावनवस्थानं स्यात् दृष्टान्तान्तरापेक्षणात् ।।४।। किंच, वादिप्रतिवादिनोर्यत्र बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तो भवति प्रतिनियतव्यक्तिरूपः, यथाऽग्नौ साध्ये महानसादिः। व्यक्तिरूपं च निदर्शनं कथं तदविनाभावनिश्चयार्थं स्यात् ? प्रतिनियतव्यक्तौ तन्निश्चयस्य कर्तु मशक्तः। अनियतदेशकालाकाराधारतया सामान्येन तु व्याप्तिः। कथमन्यथान्यत्र शंका-उक्त अनुमानमें साकल्यपनेसे साध्यके निवृत्त होनेपर साधनको निवृत्ति होना असंभव है, क्योंकि उसके अन्य गोरे पुत्रमें भी तत्पुत्रत्व संभावित है अतः तत्पुत्रत्व हेतुकी स्वसाध्य (काला होना) के साथ व्याप्ति सिद्ध नहीं होती ? समाधान - तो फिर साकल्यपनेसे साध्यके निवृत्त होने पर साधनकी निवृत्ति होती है ऐसा निश्चय करानेवाले बाधक प्रमाणसे ही व्याप्तिकी सिद्धि हुई, दृष्टांतकी कल्पना तो व्यर्थ ही है। व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्ति स्तत्रापि तद् विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्यात् दृष्टांतांतरापेक्षणात् ।। ४०।। सूत्रार्थ – दुसरी बात यह भी है कि दृष्टांत किसी विशेष व्यक्तिरूप मात्र होता है किन्तु व्याप्ति सामान्यरूप होती है अतः दृष्टांतमें भी यदि साध्यसाधनके अविनाभाव संबंध में विवाद खड़ा हो जाय तो अनवस्था दोष आयेगा क्योंकि उक्त विवाद स्थानमें पुनः दृष्टांतकी आवश्यकता पड़ेगी, तथा उसमें विवाद होनेपर तोसरे दृष्टांतकी आवश्यकता होगी। ___किंच, जहां वादी प्रतिवादी दोनोंके बुद्धिका साम्य हो वह दृष्टांत कहलाता है, यह दृष्टांत प्रतिनियत व्यक्तिरूप हुया करता है, जैसे अग्निरूप साध्य में महानसका दृष्टांत है। यह व्यक्तिरूप उदाहरण साध्यसाधनके अविनाभावका निश्चय किसप्रकार करा सकता है ? प्रतिनियत व्यक्तिमें उसके निश्चयको करना तो अशक्य ही है । इसका भो कारण यह है कि अनियत देश अनियत काल एवं अनियत आकार के अाधाररूपसे सामान्यस्वरूप व्याप्ति होती है उसका प्रतिनियतव्यक्ति में निश्चय होना कथमपि संभव For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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