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प्रमेयकमलमार्तण्डे
नापि तत्पुत्रत्वादेः सत्प्रतिपक्षत्वात् । यतः प्रतिपक्षस्तुल्यबलः, अतुल्यबलो वा सन् स्यात् ? न तावदाद्यः पक्षः; द्वयोस्तुल्यबलत्वे 'एकस्य बाधकत्वमपरस्य च बाध्यत्वम्' इति विशेषानुपपत्तेः । न च पक्षधर्मत्वाद्यभाव एकस्य विशेषः; तस्यानभ्युपगमात् । अभ्युपगमे वा अत एवैकस्य दुष्टत्वसिद्धेने किंचिदनुमानबाधया ? द्वितीयपक्षेप्यतुल्यबलत्वं तयोः पक्षधर्मत्वादिभावाभावकृतम्, अनुमानबाधाजनितं वा स्यात् ? प्रथमपक्षोनभ्युपगमादेवायुक्तः, पक्षधर्मत्वादेरुभयोरप्यभ्युपगमात् । द्वितीयोप्यसम्भाव्यः; तस्याद्यापि विवादपदापन्नत्वात् । न खलु द्वयोस्त्रैरूप्याविशेषतस्तुल्यत्वे सति 'एकस्य बाध्यत्वमपरस्य .च बाधकत्वम्' इति व्यवस्थापयितु शक्यमविशेषेणैव तत्प्रसंगात् । इतरेतराश्रयश्च-अतुल्यबलत्वे सत्यनुमानबाधा, तस्यां चातुल्यबलत्वमिति ।
तत्पूत्रत्वादि हेतु भी सत्प्रतिपक्षत्वके कारण हेत्वाभास नहीं बनते [ किन्तु साध्याविनाभावके न होनेके कारण हेत्वाभास बनते हैं ] जिस हेतुमें प्रतिपक्षी मौजूद हो उसे सत् प्रतिपक्षत्व नामा सदोष हेतु कहते हैं सो वह प्रतिपक्ष तुल्य बल वाला है या अतुल्य बल वाला है ? प्रथम पक्ष ठीक नहीं यदि दोनों पक्ष-प्रतिपक्षके हेतु तुल्य बल वाले होवे तो एकके बाध कपना और दूसरे के बाध्यपना इस प्रकार विशेष भेद बन नहीं सकता । एक हेतुमें पक्षधर्मत्वादिका अभाव होनेसे विशेष भेद हो जायगा ऐसा कहना भी अयुक्त है क्योंकि उसको आपने माना नहीं, अर्थात् पक्षधर्मत्वादिके कारण हेतुमें विशेष भेद हो ऐसा आप मानते नहीं। यदि मानते हैं तो इसी पक्षधर्मत्वादिके अभाव होनेके कारण ही दोनों में से एककी सदोषता सिद्ध हो जाती है, उसके लिये अनुमान द्वारा बाधा उपस्थित करनेसे कुछ लाभ नहीं होता। दूसरे पक्षमें भी प्रश्न होता है कि उन दोनों हेतुओंमें [ तत्पुत्रत्व और शास्त्रव्याख्यानवत्व में ] अतुल्य बल किस कारणसे हुआ पक्षधर्मत्वादिका सद्भाव और प्रभाव होनेके कारण हुया या अनुमानद्वारा बाधा होनेके कारण हुमा ? प्रथम पक्ष स्वीकार नहीं होनेसे अयुक्त है, क्योंकि आपने पूर्वोक्त तत्पुत्रत्व और शास्त्रव्याख्यानवत्व हेतुओंमें पक्षधर्मत्वादि लक्षणों को स्वीकार किया है । द्वितीय पक्ष भी असंभव है, क्योंकि अनुमान द्वारा बाधित होना अभी तक विवादग्रस्त है, दोनों हेतुनोंमें त्रैरूप्य की अविशेषता होने के कारण तुल्यपना होते हुए भी एक हेतुके बाध्यपना और दूसरेके बाधकपना है ऐसी व्यवस्था करना शक्य नहीं, उनमें तो समानरूपसे बाध्यपना या बाध कपना ही रहेगा। अन्योन्याश्रय दोष भी होगा-अतुल्य बलत्व होने पर अनुमान बाधा आयेगी और उसके होने पर अतुल्यबलत्व होगा।
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