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हेतोः पाञ्चरूप्यखण्डनम्
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प्रकरणसमस्याप्यसत्प्रतिपक्षत्वाभावादहेतुत्वम् । तस्य हि लक्षणम् “यस्मात् प्रकरणचिन्ता स प्रकरणसमः”। [न्यायसू० १।२७] इति । प्रक्रियेते साध्यत्वेनाधिक्रियेते अनिश्चितौ पक्षप्रतिपक्षी यौ तौ प्रकरणम् । तस्य चिन्ता संशयात्प्रभृत्याऽऽनिश्चयात्पर्यालोचना यतो भवति स एव, तनिश्चयार्थं प्रयुक्तः प्रकरणसमः । पक्षद्वयेप्यस्य समानत्वादुभयत्राप्यन्वयादिसद्भावात् । तद्यथा-'अनित्यः शब्दो नित्यधर्मानुपलब्धेर्घटादिवत्, यत्पुननित्यं तन्नानुपलभ्यमाननित्यधर्मकम् यथात्मादि' एवमेकेनान्यतरानुपलब्धेरनित्यत्व सिद्धौ साधकत्वेनोपन्यासे सति द्वितीयः प्राह-यद्यनेन प्रकारेणानित्यत्वं प्रसाध्यते तर्हि
हैं । इसीप्रकार “यह देवदत्त मूर्ख है क्योंकि उस व्यक्ति पुत्र है जैसे कि उसका अन्य पुत्र मूर्ख है," इस अनुमानका तत्पुत्रत्व हेतु भी रूप्य लक्षण रहते हुए भी सदोष हैसाध्यका गमक नहीं है, क्योंकि उस व्यक्तिका पुत्र होने मात्रसे देवदत्तकी मूर्खता सिद्ध नहीं होती।
हम यौगाभिमत पांचरूप्य हेतुका लक्षण तो युक्त है क्योंकि निर्दोष है, पूर्वोक्त एक शाखा प्रभवत्व हेतु इसलिये असत् हुया कि उसमें अबाधित विषयत्व नामा लक्षण नहीं है, प्रात्म प्रत्यक्षा प्रमाण द्वारा ही एक शाखा प्रभवत्व हेतुका विषय [ साध्य ] बाधित होता है, तत्पुत्रत्वादि हेतु भी असत् प्रतिपक्षत्व नामा लक्षण के अभाव में दोषी ठहरता है, अर्थात् देवदत्त मूर्ख है इत्यादि उक्त अनुमानके हेतुके प्रतिपक्षभूत शास्त्रव्याख्यानादि हेतुका होना संभव है-यह देवदत्त विद्वान है क्योंकि शास्त्रका व्याख्यान करता है इत्यादि अनुमान प्रयुक्त होनेके कारण तत्पुत्रत्व हेतु सदोष है । हेतुमें प्रकरणसम नामा दोष भी असत् प्रतिपक्षत्व लक्षणके न होनेसे आता है प्रकरण समका लक्षण“यस्मात् प्रकरण चिता स प्रकरण समः" "प्रक्रियेते साध्यत्वेनाधिक्रियेते अनिश्चितौ पक्ष प्रतिपक्षौ यौ तौ प्रकरणम्" जिससे प्रकरणकी चिंता हो उसे प्रकरण सम कहते है, साध्यपनेसे अनिश्चित किये जाते हैं पक्ष प्रतिपक्ष जहां उसे 'प्रकरण' कहते हैं । अर्थात् वादी द्वारा जो पक्ष निश्चित है वह प्रतिवादी द्वारा अनिश्चित है और जो प्रतिवादी द्वारा निश्चित है वह वादी द्वारा निश्चित नहीं, उसे प्रकरण कहते हैं । उस प्रकरणकी चिंता- संशयके अनंतर समयसे लेकर निश्चय होने तक जिससे विचार चलता है वह हेतु ही है उसके निश्चयके लिए प्रयुक्त होना प्रकरण सम है। यह हेतु पक्ष प्रतिपक्षमें समान वर्तता है क्योंकि उभयत्र अन्वय ग्रादिका सद्भाव है, इसीको स्पष्ट करते हैंशब्द अनित्य है, क्योंकि इसमें नित्य धर्मकी अनुपलब्धि है, जैसे घट आदिमें नित्य धर्म
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