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हेतोस्त्रैरूप्य निरासः
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हेतु के रूप्य मान्यता के खंडन का सारांश
अनुमान का खास अंग हेतु है उसके लक्षण में विसंवाद है, बौद्ध हेतु का लक्षण त्रैरूप्य करते हैं पक्ष धर्मत्व, सपक्ष सत्व, और विपक्ष व्यावृत्ति इन तीन धर्मों को रूप्य कहते हैं । उनका कहना है कि प्रसिद्ध नामा हेतु के दोष को हटाने के लिए पक्ष धर्मत्व गुण है विरुद्धता को हटाने के लिए सपक्ष सत्व है और अनेकान्तिक का निरसन करने के लिये विपक्ष व्यावृत्ति गुण है, इस पर प्राचार्य ने उदाहरण देकर समझाया है कि इन सबकी कोई नियामकता नहीं है, "उदेष्यति शकटं कृतिकोदयात्" इस अनुमान के हेतु में पक्ष धर्मत्व गुण नहीं है अर्थात् एक मुहूर्त के अनंतर रोहिणी का उदय होगा यह साध्य है और उसका हेतु कृतिका नक्षत्र का उदय है, इन दोनों में एक मुहूर्त का अन्तराल है अतः यह हतु पक्ष धर्म युक्त नहीं है किन्तु वह अपने साध्य को (रोहिणी के उदय को) सिद्ध कर देता है अतः पक्ष धर्मत्व गुण की आवश्यकता नहीं है, सपक्षत्व गुण भी ऐसा ही है क्योंकि बहुत से हेतुओं के सपक्ष नहीं रहते हैं,
आप बौद्ध के प्रसिद्ध अनुमान “सर्वं क्षणिक सत्वात्" में सत्व हेतु का कोई सपक्ष नहीं है क्योंकि सभी पक्ष में आ गये हैं। हां विपक्ष व्यावृत्ति गुण ठीक है किन्तु वह भी साध्याबिनाभावित्व नामक जैन हेतु के लक्षण में पहले से ही विद्यमान है, जो साध्य का अविनाभावी होगा वह कथमपि विपक्ष में नहीं जा सकता है, इस तरह बौद्धाभिमत हेतु का लक्षण सिद्ध नहीं होता है अतः “साध्याबिनाभावित्वेन निश्चितो हेतः” यही लक्षण निर्दोष है, बुद्धिमान बौद्ध को निःपक्ष होकर इसे ही स्वीकार करना चाहिये ।
अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किं नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किं ।।१।।
| समाप्त ।।
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