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________________ ३२२ प्रमेयकमलमार्तण्डे अन्यथानुपपत्तिनियमनिश्चयलक्षणत्वादेव प्रसिद्धः, स्वयमसिद्धस्यान्यथानुपपत्तिनियमनिश्चयासम्भवाद् विरुद्धानकान्तिकवत् । । किञ्च, त्रैरूप्यमात्रं हेतोर्लक्षणम्, विशिष्टं वा रूप्यम् ? तत्राद्यविकल्पे धूमवत्त्वादिवद्वक्त - त्वादावप्यस्य सम्भवात्कथं तल्लक्षणत्वम् ? न खलु 'बुद्धोऽसर्वज्ञो वक्त त्वादे रथ्यापुरुषवत्' इत्यत्र हेतोः पक्षधर्मत्वादिरूपत्रयसद्भावे परैर्गमकत्वमिष्यतेऽन्यथानुपपन्नत्वविरहात् । द्वितीय विकल्पे तु कुतो वैशिष्ट्य रूप्यस्यान्यत्रान्यथानुपपन्नत्वनियमनिश्चयात्, इति स एवास्य लक्षणमर्णं परीक्षादक्ष त्रैरूप्य लक्षण असाधारण स्वभावरूप नहीं है क्योंकि वह हेतु और हेत्वाभास दोनों में पाया जाता है जैसे कि योग का पंचरूपता लक्षण उभयत्र पाया जाता है। हेतु के असिद्धादि दोषों का परिहार तो अन्यथानुपपत्तिके नियम का निश्चितपने से रहनारूप लक्षण से ही हो जाता है, जो हेतु स्वयं प्रसिद्ध है उसमें अन्यथानुपपत्ति नियम का निश्चय [साध्य के बिना नियम से नहीं होने का निश्चय] असंभव है, जैसे कि विरुद्ध एवं अनैकांतिक रूप हेतुओं में अन्यथानुपपत्ति नियमका निश्चय होना असंभव होता है। किञ्च, केवल त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानना बौद्ध को इष्ट है अथवा विशिष्ट त्रैरूप्य को मानना इष्ट है ? प्रथम विकल्प स्वीकार करे तो धूमत्व आदि हेतुनों के समान वक्तृत्वादि हेतु में भी त्रैरूप्य सामान्य पाया जाना संभव है अतः वह किस प्रकार हेतु का लक्षण बन सकता है ? बुद्धदेव असर्वज्ञ हैं, क्योंकि वे बोलते हैं जैसे रथ्यापुरुष [पागल] बोलता है । इस अनुमान के वक्तृत्व [बोलना] हेतु में पक्ष धर्मत्व आदि त्रैरूप्य का सद्भाव होते हुए इसको आपने साध्य का गमक नहीं माना है, इसका कारण यही है कि उक्त हेतु में अन्यथानुपपत्ति का अभाव है। अभिप्राय यह हुआ कि त्रैरूप्य लक्षण के रहते हुए भी वह हेतु साध्यको सिद्ध नहीं कर पाता अतः वह लक्षण असत् है । दूसरा विकल्प - विशिष्ट त्रैरूप्यको हेतुका लक्षण बनाते हैं तो वह विशिष्ट त्रैरूप्य अन्यथानुपपत्ति के नियम के निश्चय को छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं 'है, अर्थात् अन्यथानुपपत्व नियमको ही विशिष्ट त्रैरूप्य कहते हैं इसलिए परीक्षाचतुर पुरुषोंको उसी परिपूर्ण लक्षणको स्वीकार करना चाहिए । अन्यथानुपपन्नत्व रूप हेतुका लक्षण मौजूद होवे तब पक्षधर्मत्व आदि लक्षण का अभाव होने पर भी हेतु साध्यका गमक [सिद्ध करने वाला] होता है, जैसे एक मुहूर्त बाद रोहिणी नक्षत्रका उदय होगा, क्योंकि कृतिका नक्षत्रका उदय हो चुका है। इस अनुमान का कृतिका उदयत्व नामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001277
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 2
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages698
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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