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[ २२ ] विषय सर्वज्ञके विषय में मीमांसकका पूर्वपक्ष.... मीमांसक-सर्वज्ञ नहीं है क्योंकि सत्ता ग्राहक पांचों प्रमाणों द्वारा उसकी सिद्धि नहीं होती.... अनुमान द्वारा सर्वज्ञ सिद्ध नहीं होता क्योंकि अविनाभावी हेतु का अभाव है.... सर्वज्ञ सिद्धि में प्रयुक्त हुआ प्रमेयत्व हेतु भी असत् है.... आगमसे भी सर्वज्ञ सिद्धि नहीं होती.... अर्थापत्तिसे भी सर्वज्ञ सिद्ध नहीं होता.... कोई भी प्रत्यक्ष ज्ञान इन्द्रियोंसे निरपेक्ष नहीं होता.... यदि सर्वज्ञ धर्म अधर्मका ग्राहक है तो वह विद्यमान वस्तुको ग्रहण नहीं कर सकेगा.... जैन द्वारा मीमांसकके मतव्यका निरसन.... सर्वज्ञ प्रत्यक्षसे सिद्ध नहीं होता अपितु अनुमान प्रमाणसे सिद्ध होता है.... कोई अात्मा सकल पदार्थोंको साक्षात् जानने वाला है इत्यादि अनुमानसे उसकी सिद्धि होती है, सर्वज्ञका ज्ञान इन्द्रियादिकी अपेक्षा नहीं रखता.... धर्म अधर्म संज्ञक पदार्थ इन्द्रियोंसे उपलब्ध किस कारणसे नहीं होते ?.... मंत्र प्रश्नादिसे संस्कारित पुरुष अतीत एवं अनागतको भी ज्ञात करते हैं तब कालांतरित सूक्ष्मादि पदार्थोंको सर्वज्ञ क्यों नहीं ज्ञात कर सकता ? उपदेश द्वारा अखिल विषयका सामान्य ज्ञान होना संभव ही है.... आगमादि अस्पष्ट ज्ञानसे स्पष्ट ज्ञान कैसे होगा यह प्रश्न भी ठीक नहीं.... शीत उष्णादि परस्पर विरोधी पदार्थ एक साथ एक ज्ञानमें प्रतीत होते हैं.... यगपत् अशेष पदार्थ ज्ञात होनेसे द्वितीय क्षणमें असर्वज्ञ बन जायगा ऐसी आशंका व्यर्थ है.... सर्वज्ञका ज्ञान अपूर्वार्थग्राहो ही है.... सर्वज्ञ परगत रागादि को जानने मात्रसे रागी नहीं होता.... सर्वज्ञका ज्ञान विश्रांत नहीं होता.... सकल पदार्थ साक्षात्कारी सर्वज्ञ है, क्योंकि उसमें कोई बाधक प्रमाण नहीं है.... विवादस्थ पुरुष सर्वज्ञ नहीं इत्यादि अनुमानमें प्रयुक्त वक्त त्व हेतु सदोष है.... सर्वज्ञमें वक्त त्वका अभाव सिद्ध होना असंभव है....
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